लोग नाक की बजाय मुंह से सांस क्यों लेते हैं?
2. एडेनोइड्स या टॉन्सिल्स का बढ़ना- बच्चों में अक्सर एडेनोइड्स या टॉन्सिल्स बढ़ जाते हैं, जिससे नाक का रास्ता ब्लॉक हो जाता है. इस कारण बच्चे अक्सर मुंह खोलकर सांस लेते हैं.
3. नाक की संरचना में गड़बड़ी- अगर किसी व्यक्ति की नाक का सेप्टम टेढ़ा है या नाक में पॉलीप्स हैं, तो हवा के प्रवाह में रुकावट आती है. इस वजह से भी मुंह से सांस लेना आसान लगने लगता है.
4. चेहरे या जबड़े की बनावट- कुछ लोगों के चेहरे या जबड़े की बनावट ऐसी होती है कि उनका मुंह थोड़ा खुला रहता है, जिससे वे नाक की बजाय मुंह से सांस लेने की आदत डाल लेते हैं.
5. आदत या व्यवहार- बचपन में अंगूठा चूसने या हमेशा मुंह खुला रखने की आदत भी बाद में मुंह से सांस लेने की समस्या का कारण बन जाती है.
6. स्लीप एपनिया- यह एक नींद से जुड़ा विकार है जिसमें नींद के दौरान सांस रुक-रुककर चलती है. इस दौरान शरीर स्वतः मुंह से सांस लेना शुरू कर देता है.
मुंह से सांस लेने के नुकसान
2. दांतों और मसूड़ों की समस्याएं- लार में मौजूद खनिज दांतों को मजबूत रखते हैं. मुंह सूखने से दांतों में कैविटी और मसूड़ों में सूजन हो सकती है, जो आगे चलकर दांतों के कमजोर होने का कारण बनती है.
3. नींद की गुणवत्ता पर असर- मुंह से सांस लेने से नींद की गुणवत्ता घट जाती है. कई बार इससे स्लीप एपनिया जैसी गंभीर स्थिति बन जाती है, जिसमें दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती. इसके परिणामस्वरूप दिनभर थकान, चिड़चिड़ापन और ध्यान की कमी महसूस होती है.
4. बच्चों की ग्रोथ पर असर- अगर बच्चे लगातार मुंह से सांस लेते हैं, तो उनके चेहरे की हड्डियों की संरचना प्रभावित हो सकती है. चेहरा लंबा और जबड़ा पतला हो जाता है. दांत टेढ़े-मेढ़े निकल सकते हैं और आगे चलकर ब्रेसेस की जरूरत पड़ सकती है.
5. दिमाग पर असर और थकान- मुंह से सांस लेने पर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, जिससे दिमाग की कार्यक्षमता घटती है. व्यक्ति को थकान, सुस्ती और मानसिक धुंधलापन (ब्रेन फॉग) महसूस होता है.

