जहां अकबर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे बादशाह अपनी नीतियों और शौर्य के लिए याद किए जाते हैं, वहीं एक ऐसा भी बादशाह हुआ जिसने सत्ता से अधिक नशे को महत्व दिया ,उसका नाम था जहांदार शाह.जहांदार शाह, औरंगजेब का परपोता था और उसका शासनकाल बहुत ही छोटा, मात्र एक वर्ष का रहा. लेकिन इस छोटे से समय में ही उसने मुगल दरबार की छवि को बुरी तरह बदल दिया. शराब, अफीम और नाच-गाने की महफिलें उसके जीवन का हिस्सा बन गईं.
जहांदार शाह – नशे का दीवाना शहंशाह
जहांदार शाह का स्वभाव शुरुआत से ही विलासिता और मौज-मस्ती भरा था. जैसे ही उसे सत्ता मिली, उसने राजकाज से ज़्यादा समय शराब और दावतों में बिताना शुरू कर दिया. वह दिन-रात नशे में डूबा रहता था और बिना शराब के एक पल भी नहीं रहता था. कहा जाता है कि वह दरबार में भी प्याला लेकर बैठता और दरबारियों से हल्की-फुल्की बातें करता. शासन से उसका ध्यान बिल्कुल हट गया था, जिसके कारण अफसर और मंत्री अपनी मनमानी करने लगे. उसकी लत ने धीरे-धीरे उसकी छवि को “बेवड़ा बादशाह” के रूप में बना दिया.
दरबार बना शराबखाना और नाचघर
जहांदार शाह के शासन में मुगल दरबार की चमक तो बनी रही, पर उसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया. शासन की बैठकों की जगह रोज़ाना नाच-गाने की महफिलें होने लगीं. बड़े-बड़े अधिकारी और अमीर लोग वहां सिर्फ मौज-मस्ती के लिए इकट्ठा होते थे. शासन के निर्णय अक्सर नशे की हालत में लिए जाते थे, जिससे गलत फैसले बढ़े. जनता की समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था. धीरे-धीरे दरबार अनुशासनहीन और भ्रष्ट हो गया. इस माहौल ने मुगल साम्राज्य की नींव को भीतर से कमजोर कर दिया.
अफीम और सूखे नशों की भी लत
जहांदार शाह सिर्फ शराब तक सीमित नहीं रहा. उसे अफीम, चरस और अन्य सूखे नशों का भी भारी शौक था. वह हर दिन अफीम का सेवन करता था और कई बार हद से ज्यादा मात्रा ले लेता था. उसकी यह आदत उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति दोनों को बिगाड़ने लगी. शरीर कमजोर पड़ गया और दिमाग हमेशा सुस्त रहता था. हकीमों और सलाहकारों ने कई बार चेताया, लेकिन उसने किसी की बात नहीं मानी. नशे की यह लत इतनी गहरी थी कि शासन, सेना और प्रशासन सब उससे दूर होते चले गए.
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