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Delhi में सबसे पहले कब हुई थी कृत्रिम बारिश? जानें इसका पूरा इतिहास

Delhi Artificial Rainfall History: क्लाउड सीडिंग के जरिये कृत्रिम बारिश कुछ सालों से बहुत चर्चा में है, लेकिन क्या आप जानते है कि दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश कब हुई थी, अगर नहीं तो इस खबर में जाने इसका पूरा इतिहास.

Published by Shristi S
Artificial Rainfall History: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हर साल सर्दियों के दौरान गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या से जूझती है. इस दौरान शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अक्सर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है, जिससे नागरिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है. इस संकट को कम करने के लिए सरकार ने अक्टूबर के अंत में क्लाउड-सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाई है. यह पहल प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में एक अनोखी और तकनीकी कोशिश के रूप में देखी जा रही है. लेकिन क्या आप जानते है कि दिल्ली में पहली कृत्रिम बारिश कब हुई थी? आइए जानें इसका पूरा इतिहास.

क्या है कृत्रिम बारिश का इतिहास?

दिल्ली में कृत्रिम बारिश की शुरुआत पहली बार 1957 में मानसून के मौसम में हुई थी. उस समय यह प्रयोग मौसम विज्ञान और कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई तकनीक के रूप में किया गया. इसके बाद, 1970 के दशक की शुरुआत में सर्दियों के दौरान इसे दोबारा आजमाया गया. 1971-72 में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला परिसर में किए गए परीक्षणों में मध्य दिल्ली के लगभग 25 किलोमीटर क्षेत्र को शामिल किया गया. इस प्रयोग में जमीन पर रखे गए जनरेटर से आसमान में छोड़े गए सिल्वर आयोडाइड के कणों ने छोटे नाभिक के रूप में काम किया, जिनके चारों ओर नमी संघनित होकर बारिश की बूंदें बनने लगीं.
इस प्रयोग के दौरान कुल 22 दिन अनुकूल मौसम वाले माने गए, जिनमें से 11 दिन क्लाउड सीडिंग की गई और बाकी 11 दिनों को ‘तुलना के लिए नियंत्रण दिवस’ के रूप में रखा गया. नियंत्रण दिवस का उद्देश्य किसी भी बदलाव या हस्तक्षेप का प्रभाव समझने के लिए आधार रेखा तैयार करना था. शुरुआती विश्लेषण से संकेत मिला कि क्लाउड सीडिंग वाले दिनों में वास्तविक बारिश में वृद्धि हुई, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि अनुकूल मौसम में कृत्रिम वर्षा संभव है.

53 साल बाद दिल्ली में क्लाउड-सीडिंग की तैयारी

लगभग 53 साल बाद, दिल्ली में इस तकनीक का एक बार फिर परीक्षण किया गया. इस बार बुराड़ी क्षेत्र में परीक्षण के दौरान सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड के कणों को एक विमान से आकाश में छोड़ा गया. हालांकि परीक्षण के समय हवा में नमी केवल 20 प्रतिशत थी, जो आवश्यक 50 प्रतिशत से कम थी, इसलिए क्षेत्र में कोई बारिश नहीं हुई.
IIT कानपुर ने इस परीक्षण पर रिपोर्ट में बताया कि यह उड़ान एक परीक्षण मिशन के रूप में की गई थी. इसके तहत क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी क्षमताओं, विमान की तत्परता, उड़ान की अवधि, उपकरणों और फ्लेयर की कार्यक्षमता, तथा शामिल सभी एजेंसियों के बीच समन्वय का आकलन किया गया.

इन देशों में भी होता है क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल

वैश्विक स्तर पर क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल 56 से अधिक देशों में किया जाता है. ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और अमेरिका में यह तकनीक मौसम में परिवर्तन लाने, वर्षा बढ़ाने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयोग की जाती है. भारत में यह पहल इसी वैश्विक अनुभव पर आधारित है, जिसका लक्ष्य राजधानी दिल्ली में पीएम कणों (PM Pollution) की मात्रा को कम कर हवा को साफ करना है.
Shristi S
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