Chandni chowk: दिल्ली की चाँदनी चौक सिर्फ़ बाजारों और भीड़-भाड़ का नाम नहीं है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और गुप्त कहानियों का खजाना भी है. गरमागरम जलेबियों की खुशबू, पुराने हवेलियों की नक्काशी, और सदियों पुरानी गलियों की सरगर्मिया. यहाँ हर मोड़ पर इतिहास अपने स्वर में बोलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस चहल-पहल के इलाके में छुपी हैं कुछ “गुप्त गलियाँ”, जहाँ न सिर्फ़ पुरानी कला और विरासत मिलती है, बल्कि आपको मिर्ज़ा ग़ालिब जैसी शख़्सियतों के निशान भी देखने को मिलेंगे? आइए, हम आपको ले चलते हैं चाँदनी चौक की उन अनकही और रहस्यमयी गलियों में.
मिर्ज़ा ग़ालिब का घर
कम ही लोग जानते हैं कि मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का घर (हवेली) भी दिल्ली के चाँदनी चौक की पुरानी गलियों में स्थित है। मिर्ज़ा ग़ालिब 19वीं सदी के एक प्रमुख शायर थे. आज उनका घर एक संग्रहालय बन गया है. उनके कपड़े और किताबें इसी संग्रहालय में रखी हैं. जहाँ 1850 की एक पुरानी यूनानी दवा की दुकान है, जहाँ आज भी हर्बल दवाइयाँ मिलती हैं.
किनारी बाज़ार
किनारी बाज़ार तो पहले से ही मशहूर है, लेकिन अगर आप मुख्य सड़क से हटकर किसी छोटी गली में जाएँ, तो आपको पुरानी हवेलियाँ मिलेंगी जो कभी धनी मारवाड़ी व्यापारियों की हुआ करती थीं. इन हवेलियों के आँगन में खूबसूरत नक्काशीदार पत्थर की बालकनी और सजावटी खिड़कियाँ हैं, जिन्हें देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है.
नई सड़क
नई सड़क अपने थोक पुस्तक बाजार के लिए प्रसिद्ध है. ज़्यादातर लोग इसके बारे में जानते हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि यहाँ की एक गली में पहली छपाई की पुरानी और दुर्लभ उर्दू और हिंदी किताबें भी मिलती हैं.
कूचा पटी राम
आपने चाँदनी चौक कई बार देखा होगा, लेकिन आपने शायद कूचा पति राम के बारे में नहीं सुना होगा. यह एक पुरानी और लगभग भूली-बिसरी गली है जो मुगल काल में उर्दू और फ़ारसी सुलेख का एक प्रमुख केंद्र हुआ करती थी. अगर आप यहाँ आ रहे हैं, तो शाहिद भाई की 70 साल पुरानी दुकान पर ज़रूर जाएँ.
लोहे वाली गली
गली लोहे वाली एक कम जानी-पहचानी लेकिन दिलचस्प जगह है. कभी यहाँ लोहार रहते थे और लोहे और तांबे के बर्तन बनाते थे. आज भी, आप यहाँ हाथ से बने तांबे के बर्तन, पीतल की प्लेटें और नक्काशीदार बर्तन खरीद सकते हैं.
चितली क़बर
चाँदनी चौक की भीड़-भाड़ से दूर, चितली क़बर एक शांत, लगभग काव्यमय गली है. यहाँ की पुरानी बेकरी स्वादिष्ट शीरमाल (केसर की रोटी) बनाती हैं, और पुरानी दुकानों में सुगंधित इत्र मिलते हैं. यहाँ एक छोटी सूफी दरगाह भी है.
कूचा महाजनी
कूचा महाजनी, दरीबा कलां के ठीक पीछे स्थित है. यह इलाका सोने-चाँदी के व्यापार के लिए मशहूर है। यहाँ, दिल्ली के सबसे पुराने जौहरी परिवारों में से एक आज भी अपने पारंपरिक काम को बड़ी ही बारीकी से करता है। कुछ अलग करने की चाहत रखने वाले पर्यटक प्राचीन काल की आभूषण निर्माण कला और तकनीक को देखने के लिए यहाँ आते हैं.

