Supreme Court’s Historic Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ शब्दों में कहा कि अगर कोई भी उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र में पिछली सजा यानी (Conviction) की जानकारी जानबूझकर छुपाने की कोशिश करेगा तो उसका उम्मीदवार पूरी तरह से रद्द कर दिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला बिहार चुनाव के बीच सबसे महत्वपूर्ण संदेश देता है.
आखिर क्या था पूरा मामला ?
दरअसल, यह पूरा मामला मध्य प्रदेश के भीकनगांव नगर परिषद की पार्षद पूनम से जुड़ा हुआ है. जानकारी के मुताबिक, पूनम को चेक बाउंस मामले (Negotiable Instruments Act) में एक साल की सजा और मुआवजा देने का सख्त निर्देश दिया गया था. लेकिन, बाद में उन्होंने नगर पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा. हांलाकि, नामांकन पत्र में उन्होंने अपनी सजा का उल्लेख नहीं किया था. इसी जानकारी को पूरी तरह से छुपाने के लिए उनके निर्वाचन पात्रता पर कई गंभीर सवाल उठे और अंत में उन्हें पद से हटा दिया गया. यहां तक कि पूनम ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की दो न्यायाधीशों की पीठ ने पूनम की अपील को खारिज करते हुए कहा कि “जब यह पाया जाता है कि किसी उम्मीदवार ने अपनी पिछली दोषसिद्धि (Conviction) का खुलासा नहीं किया है, तो यह मतदाता के मताधिकार के स्वतंत्र इस्तेमाल में यह बाधा उत्पन्न करने का कामा करता है.”
अदालत ने यह भी बताया कि जानकारी छिपाना धोखाधड़ी (Fraud on electorate) के समान है, क्योंकि मतदाता को यह अधिकार है कि वह उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर अपना फैसला तय कर सके.
क्यों है यह फैसला सबसे अहम ?
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बिहार समेत कई राज्यों में चुनावी प्रक्रिया लगातार जारी है और यह राजनीतिक पारदर्शिता को लेकर एक मजबूत संदेश देता है. फिलहाल, अब यह साफ हो गया है कि अगर किसी उम्मीदवार को किसी आपराधिक मामले में सजा हो चुकी है, तो उसे यह जानकारी नामांकन पत्र में अनिवार्य रूप से देना बेदह ही आवशयक होता है. अगर वह ऐसा नहीं करत है तो उसकी उम्मीदवारी रद्द मानी जाएगी, भले ही बाद में उसका चुनाव जीत लिया गया हो.
कैस समझें अदालत का तर्क ?
सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि चुनाव लोकतंत्र की सबसे मजबूत रीढ़ है और मतदाता को सही जानकारी मिलना उसका हक है. अदालत ने यह भी कहा कि “जब उम्मीदवार अपने खिलाफ लंबित और समाप्त मामलों को छुपाता की कोशिश करता है तो वह मतदाता के सामने अधूरी तस्वीर प्रस्तुत करता है.
किस प्रकार पड़ता है व्यापक असर ?
यह फैसला अब देशभर में सभी चुनावों फिर चाहे स्थानीय निकाय हों या विधानसभा और या फिर लोकसभा यह सभी चुनावों में लागू किया जाएगा. इसका सीधा मतलब है कि कोई भी उम्मीदवार अगर अपने आपराधिक इतिहास की जानकारी छिपाता है, तो उसे चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य घोषित किया जा सकता है और अगर वह पहले से निर्वाचित है, तो उसका पद भी मौके पर ही खत्म किया जा सकता है.
यह महत्वपूर्ण फैसला भारतीय लोकतंत्र में ईमानदारी और पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में स्पष्ट कर दिया है कि सजा या आपराधिक मामलों को छुपाकर जनप्रतिनिधि बनने की कोशिश करने वालों के लिए किसी भी तरह से जगह नहीं होगी.

