NDA के लिए वरदान या बदलाव की आहट? SIR का बिहार चुनाव के मतदान पर कितना असर पड़ा?

Bihar Elections 2025: बिहार में गुरुवार को हुए मतदान में 121 विधानसभा क्षेत्रों के 3.75 करोड़ मतदाताओं में से कम से कम 65 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. जानें SIR का बिहार चुनाव के मतदान पर कितना असर पड़ा.

Published by Divyanshi Singh

Bihar Election 2025: बिहार में गुरुवार 6 नवंबर को हुए विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में चुनाव आयोग ने अपने इतिहास का रिकॉर्ड मतदान दर्ज किया. गुरुवार को हुए मतदान में 121 विधानसभा क्षेत्रों के 3.75 करोड़ मतदाताओं में से कम से कम 65 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. मतदान के पहले चरण ने एक बेहद करीबी और बेहद अहम मुकाबले की शुरुआत की, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की लोकप्रियता की अग्निपरीक्षा के रूप में देखा जा रहा है.

मतदाताओं ने रचा इतिहास

चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा कि विधानसभा चुनाव “बिहार के इतिहास में अब तक के सबसे अधिक 64.66 प्रतिशत मतदान के साथ उत्सव के माहौल में” शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए.दूसरे चरण में 122 सीटों के लिए 11 नवंबर को मतदान होगा. बिहार चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे.

बिहार में मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी महागठबंधन के बीच है. सत्तारूढ़ NDA में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित अन्य दल शामिल हैं. महागठबंधन या महागठबन्धन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस मुख्य दल हैं.

राजनीतिक दलों ने क्या कहा?

भारी मतदान पर राजनीतिक दलों ने तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त की. भारतीय जनता पार्टी (BJP), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और प्रशांत किशोर के जन सुराज ने इसे अपनी आसन्न जीत का संकेत बताया. भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “मैं बिहार की जनता को भारी मतदान के लिए सलाम करता हूं. मैं अब पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आपने ‘महागठबंधन’ की जीत सुनिश्चित कर दी है.”

वरिष्ठ भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “आज जिन सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से हम लगभग 100 सीटें जीतने जा रहे हैं. एनडीए की कुल सीटें 2010 के 206 सीटों के रिकॉर्ड को पार कर जाएंगी.”

जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने दावा किया कि सबसे ज़्यादा मतदान लोगों की बदलाव की चाहत का संकेत है. किशोर ने गया में पत्रकारों से कहा, “आज़ादी के बाद से बिहार में यह अब तक का सबसे ज़्यादा मतदान है. यह दो बातों की ओर इशारा करता है  एक, जैसा कि हमने पहले कहा था. बिहार की 60 प्रतिशत से ज़्यादा जनता बदलाव चाहती है.”

“दूसरा पहलू यह था कि छठ पूजा के लिए आए प्रवासी मज़दूर यहीं रुक गए और उन्होंने वोट डाला. उन्होंने अपने दोस्तों और परिवारों को भी वोट डालने के लिए कहा. महिलाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इस चुनाव में प्रवासी ही एक्स फ़ैक्टर हैं. यह उन लोगों के लिए एक संदेश है जो कहते थे कि महिलाओं के लिए ₹10,000 का इनाम उन्हें चुनाव जिता सकता है.”

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कांग्रेस पार्टी के पवन खेड़ा ने कहा कि ज़्यादा मतदान से पता चलता है कि “हमें स्पष्ट बहुमत मिलने वाला है”. सत्तारूढ़ एनडीए राज्य में नीतीश कुमार के 20 साल के शासन और केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी सरकार के 11 साल के शासन पर भरोसा करते हुए फिर से चुनाव लड़ रहा है. विपक्षी महागठबंधन सत्ता विरोधी लहर, कुशासन और रोज़गार के वादों पर वोट मांग रहा है.

क्या SIR ने मतदान प्रतिशत पर असर डाला?

243 सदस्यीय विधानसभा के ये चुनाव सिर्फ बिहार के लिए ही नहीं, बल्कि 2029 के आम चुनाव से पहले देश के राजनीतिक माहौल का संकेत भी माने जा रहे हैं. यह चुनाव विवादित “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR)” यानी मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया के बाद हो रहे हैं, जिस पर विपक्ष ने “हेरफेर” और “धांधली” के आरोप लगाए थे.

रिकॉर्ड मतदान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा की गई एसआईआर प्रक्रिया के बाद बिहार में मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई थी.

भारत निर्वाचन आयोग ने 30 सितंबर को चुनावी राज्य बिहार की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की. अंतिम सूची के अनुसार राज्य में लगभग 7.42 करोड़ मतदाता हैं. अगस्त में प्रकाशित मसौदा सूची में 7.24 करोड़ मतदाता थे. यह मतदाता सूची से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के बाद हुआ था, जिसमें 24 जून 2025 तक 7.89 करोड़ मतदाता थे.

अगस्त में मसौदा सूची प्रकाशित करते समय हटाए गए 65 लाख नामों के अलावा 3.66 लाख ‘अयोग्य’ मतदाताओं के नाम भी हटाए गए हैं, जबकि 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं, जिससे बिहार में अंतिम मतदाताओं की संख्या 7.4 करोड़ हो गई है. इसका मतलब है कि 24 जून की सूची से लगभग 47 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए.

इसके बावजूद गुरुवार के रिकॉर्ड मतदान से यह साफ है कि SIR प्रक्रिया का मतदान पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा. 2020 के चुनावों में, जो कोविड-19 महामारी के दौरान हुए थे, 57.29 प्रतिशत मतदान हुआ था. 2015 में यह 56.91 प्रतिशत और 2010 में 52.73 प्रतिशत था.

Divyanshi Singh
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