राजनीति की दुनिया हमेशा अप्रत्याशित रही है. जो नेता कल एक-दूसरे पर आरोप लगाते थे, वही आज किसी ही गठबंधन में साथ दिख सकते हैं. ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि अगला मोड़ क्या होगा? राजनीति में कुछ भी संभव है. ऐसे में संभावना यह भी है कि AIMIM इस चुनाव में उल्लेखनीय सीटें हासिल करती है, तो वह महागठबंधन का हिस्सा बन सकती है.
AIMIM की राजनीतिक पकड़
सबसे पहले AIMIM की राजनीतिक स्थिति को समझना ज़रूरी है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम बहुल और वंचित वर्ग के इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है. पार्टी खुद को “हाशिये पर धकेले गए तबकों की आवाज़” कहती है. लेकिन भारतीय राजनीति में यह पार्टी अक्सर “वोट कटवा” के आरोपों से भी घिरी रहती है. महागठबंधन के कई दल भी इसे लेकर सतर्क रहते हैं.
AIMIM की भूमिका “किंगमेकर” हो सकती है
अब सवाल गठबंधन की संभावना का है. अगर चुनाव नतीजों में स्थिति ऐसी बनती है कि सत्ता की दहलीज महज़ कुछ सीटों के अंतर पर हो, तो राजनीति में संवाद और समझौते के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं. ऐसे परिदृश्य में AIMIM की भूमिका “किंगमेकर” जैसी भी हो सकती है.
हालांकि, गठबंधन सिर्फ संख्या पर नहीं टिकता. इसके लिए विचारों में न्यूनतम समानता, नेतृत्व के प्रति भरोसा और सत्ता एवं नीतियों में हिस्सेदारी पर भी सहमति ज़रूरी होती है. महागठबंधन के कई दल धर्मनिरपेक्ष और व्यापक सामाजिक समीकरणों की राजनीति करते हैं, वहीं AIMIM की पहचान मुस्लिम अधिकारों की मुखर राजनीति से जुड़ी है. यही अंतर दोनों पक्षों को एक-दूसरे के करीब आने में सावधान बनाता है.
अगर कहें तो संभावनाएं बिल्कुल हैं, लेकिन गठबंधन तभी बनेगा जब चुनाव परिणामों के बाद आवश्यकता, राजनीतिक लाभ और साझा सहमति, तीनों एक साथ मिलें. राजनीति में “असंभव” जैसा शब्द अक्सर चुनाव नतीजों के बाद अपना अर्थ खो देता है.

