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UPS की 7 खामियां क्यों लोगों को पसंद नहीं आ रही ये स्कीम, जानें वजह

सरकार की यूनिफाइड पेंशन स्कीम में अब तक केवल 1 लाख कर्मचारियों ने हिस्सा लिया है. समय की कमी और जटिल शर्तों के चलते कर्मचारी निर्णय लेने में हिचक रहे हैं.

Published by sanskritij jaipuria

केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) शुरू की है, जो कि नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और पुरानी पेंशन योजना के बीच बैलेंस बनाने की एक कोशिश है. हालांकि सरकार ने इस योजना को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए कुछ बदलाव किए हैं, फिर भी कर्मचारियों की इसमें दिलचस्पी कम दिखाई दे रही है. अब तक केवल 1 लाख कर्मचारियों ने इस स्कीम को अपनाया है, जबकि केंद्र सरकार में लगभग 23 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं.

कम भागीदारी को देखते हुए सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि UPS को चुनने की आखिरी तारीख को आगे बढ़ाया जाए या नहीं. अभी ये तारीख 30 सितंबर तय की गई है. कई कर्मचारी संगठनों ने कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर इसे दो महीने तक बढ़ाने की मांग की है. उनका मानना है कि इससे कर्मचारियों को योजना को समझने और सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद मिलेगी. ये योजना चुनने का मौका केवल एक बार ही दिया गया है, इसलिए कर्मचारियों को पर्याप्त समय मिलना जरूरी है. जून में पहले भी एक बार इस तारीख को बढ़ाया जा चुका है.

कर्मचारियों की चिंताएं क्या हैं?

यूनिफाइड पेंशन स्कीम को मार्च 2025 में शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य NPS जैसी मार्केट-आधारित योजना और पुरानी पेंशन व्यवस्था के बीच संतुलन बनाना है. हालांकि, कर्मचारी इसे अपनाने में हिचक रहे हैं.

इसके पीछे कई वजहें हैं:

पूर्ण पेंशन लाभ के लिए 25 साल की सेवा जरूरी थी.
योग्य परिवार के सदस्यों की परिभाषा बहुत सीमित थी.
योजना की जटिलता और भविष्य की वित्तीय सुरक्षा को लेकर संशय बना हुआ है.

सरकार ने किए बदलाव

कर्मचारियों की चिंता को देखते हुए सरकार ने सितंबर में UPS में कुछ अहम बदलाव किए. अब 25 की बजाय 20 साल की सेवा पर भी पूरी पेंशन मिलने का प्रावधान कर दिया गया है. ये बदलाव खासकर अर्धसैनिक बलों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि वे अक्सर जल्दी रिटायर हो जाते हैं. साथ ही, यदि सेवा के दौरान कोई कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो परिवार को बेहतर आर्थिक सहायता मिलेगी.

यूपीएस की मेन खामियां:

पेंशन प्राप्त करने के लिए कम से कम 20 सालों तक सेवा करना जरूरी है, जिससे कम सेवा अवधि वाले कर्मचारियों को पेंशन मिलने में दिक्कत होती है.

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यदि कोई कर्मचारी 60 साल की आयु से पहले स्वेच्छा से सेवा छोड़ता है, तो पेंशन मिलने की निश्चित तारीख नहीं होती, जिससे पेंशन लाभों के बारे में स्पष्टता नहीं रहती.

नई योजना में खैर ये चीज अच्छी है कि यदि सेवा के दौरान कोई कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो परिवार को बेहतर आर्थिक सहायता मिलेगी.

पुराने पेंशन मॉडल की तरह इस योजना में कर्मचारी वेतन से नियमित रूप से गारंटीड भविष्य निधि कटौती और उस पर ब्याज का प्रावधान नहीं किया गया है, जिससे कर्मचारियों के लिए वित्तीय सुरक्षा कम हो जाती है.

पेंशन की गणना अंतिम वेतन के आधार पर नहीं, बल्कि पिछले 12 महीनों के औसत वेतन के आधार पर की जाती है, जिससे पेंशन राशि कम हो जाती है.

रिटायरमेंट के समय कुल पेंशन राशि का 60% एक बार में दिया जाता है, लेकिन उस एकमुश्त राशि पर टैक्स देना पड़ता है, जबकि पुरानी योजना में यह पूरी राशि करमुक्त होती थी.

कई कर्मचारी संघ नई पेंशन योजना का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह मॉडल पूर्व योजना और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली दोनों से भी कमतर लगता है और वे पुरानी पेंशन योजना की पुनः स्थापना की मांग कर रहे हैं.

sanskritij jaipuria

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