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जीजा ने दिया ऐसा गिफ्ट, घर पर पहुंची इनकम टैक्स की टीम, जानें क्या है पूरा मामला

INCOME TAX: यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले डॉ. चौधरी ने अपना आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल किया. उन्होंने लगभग ₹20 लाख की कुल आय दिखाई थी और ₹5.5 लाख का कर चुकाया था. हालांकि, उनके बैंक खाते में कुछ बड़े लेन-देन आयकर विभाग के ध्यान में आए, जिससे उन्हें इन लेन-देन पर संदेह हुआ.

Published by Divyanshi Singh

UAE: संयुक्त अरब अमीरात से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. जहां एक शख्स को अपने जीजा से 80 लाख  तोहफा लेना एक शख्स को भारी पड़ गया. और आयकर विभाग ने उसे ‘इनकम’ मानकर 69 लाख रुपये का भारी-भरकम टैक्स नोटिस थमा दिया. यह मामला यूएई में रहने वाले एक एनआरआई डॉ. चौधरी का है, जो टैक्स विभाग के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ते हुए इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) तक पहुंचे. 4 नवंबर 2025 को आए ITAT कोलकाता के इस फैसले ने ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा और गिफ्ट पर टैक्स के नियमों को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है.

 भारतीय डॉ. चौधरी से जुड़ा है, जिन्होंने कर विभाग के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) का दरवाजा खटखटाया. 4 नवंबर, 2025 को जारी आईटीएटी कोलकाता के फैसले ने “रिश्तेदार” की परिभाषा और उपहारों पर कर नियमों को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है.

क्या है पूरा मामला?

यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले डॉ. चौधरी ने अपना आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल किया. उन्होंने लगभग ₹20 लाख की कुल आय दिखाई थी और ₹5.5 लाख का कर चुकाया था. हालांकि, उनके बैंक खाते में कुछ बड़े लेन-देन आयकर विभाग के ध्यान में आए, जिससे उन्हें इन लेन-देन पर संदेह हुआ.

इसके बाद, डॉ. चौधरी को पहले धारा 131 के तहत स्पष्टीकरण मांगते हुए तलब किया गया. इसके तुरंत बाद धारा 133(6) के तहत एक नोटिस जारी किया गया. डॉ. चौधरी ने इन बड़े लेन-देन से संबंधित सभी आवश्यक दस्तावेज़ और साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिसमें बताया गया कि उन्हें अपने बहनोई (अपनी बहन के पति) से उपहार के रूप में ₹80 लाख मिले थे.

इसके बावजूद कर अधिकारी उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुए. उनके मामले को पुनर्मूल्यांकन (धारा 148) के लिए चुना गया और उन्हें फिर से अपना आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए कहा गया. उन्हें धारा 142(1) के तहत भी एक नोटिस मिला, जिसका उन्होंने जवाब दिया. हालांकि, कर अधिकारियों ने इन तर्कों को अपर्याप्त पाया. विभाग ने धारा 143(3) और 147 के तहत एक मूल्यांकन आदेश जारी किया, जिसमें डॉ. चौधरी की कुल आय ₹1.5 करोड़ (लगभग 1.5 मिलियन डॉलर) निर्धारित की गई और ₹6.9 मिलियन (लगभग 1.9 मिलियन डॉलर) का कर डिमांड लगाया गया.

₹6.9 मिलियन (लगभग 1.9 मिलियन डॉलर) की इस भारी कर डिमांड से निराश होकर, डॉ. चौधरी ने शुरुआत में सीआईटी(ए) [आयुक्त (अपील)] में अपील की. ​​सीआईटी(ए) ने मामले की जांच की और डॉ. चौधरी को आंशिक राहत दी, लेकिन ₹5.5 मिलियन (लगभग 8 मिलियन डॉलर) के गिफ्ट डीड से संबंधित मुद्दे को खारिज कर दिया.

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विभाग की मुख्य आपत्ति क्या थी?

विभाग की मुख्य आपत्ति यह थी कि गिफ्ट डीड संयुक्त राज्य अमेरिका में निष्पादित किया गया था. इसके अलावा, यह लेनदेन के नौ साल बाद निष्पादित किया गया था और इसमें प्राप्तकर्ता (डॉ. चौधरी) के हस्ताक्षर नहीं थे. विभाग ने इस दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए. इसके अलावा, विभाग ने बहनोई के धन के स्रोत, खासकर ₹55 लाख (लगभग 15 लाख डॉलर नकद) पर भी सवाल उठाए.

बहनोई भी एक रिश्तेदार हैं, और यह उपहार कर योग्य नहीं है.

अंततः मामला आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) की कोलकाता पीठ में पहुंचा, जहां डॉ. चौधरी को 4 नवंबर, 2025 को भारी जीत मिली. अपने फैसले में, न्यायाधिकरण ने आयकर अधिनियम के नियमों को स्पष्ट रूप से समझाया और कर विभाग की दलीलों को खारिज कर दिया.

ITAT ने स्पष्ट किया कि आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(vii) के तहत “रिश्तेदार” की परिभाषा में बहनोई (बहन का पति) भी शामिल है. कानून के अनुसार, रिश्तेदारों से प्राप्त किसी भी उपहार को आपकी कुल आय में नहीं जोड़ा जा सकता और यह पूरी तरह से कर-मुक्त है.

न्यायाधिकरण ने “उपहार दस्तावेज़” के संबंध में विभाग की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया. ITAT ने कहा कि धारा 56 के तहत छूट पाने के लिए औपचारिक उपहार विलेख की कानूनी रूप से आवश्यकता नहीं है, खासकर यदि उपहार की आय (जो चल संपत्ति है) वैध बैंकिंग माध्यमों से प्राप्त की गई हो. इसने यह भी याद दिलाया कि भारत में उपहार कर अधिनियम, 1958, 1 अक्टूबर, 1998 से निरस्त हो चुका है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ITAT ने धन के स्रोत पर भी ध्यान दिया. न्यायाधिकरण ने स्वीकार किया कि लेन-देन की प्रामाणिकता, दाता (साले) की पहचान और एनआरई खाते के माध्यम से धन की प्राप्ति, सभी स्थापित हो चुके थे. यदि विभाग को दाता के ₹55 लाख के स्रोत के बारे में कोई संदेह था, तो जाँच उपहार प्राप्तकर्ता डॉ. चौधरी द्वारा नहीं, बल्कि उनके साले द्वारा की जानी चाहिए थी.

चूँकि लेन-देन बैंकिंग माध्यमों से किया गया था और यह साबित हो गया था कि उपहार एक “रिश्तेदार” से आया था, इसलिए ITAT ने ₹80 लाख को आय मानने के फैसले को पलट दिया और डॉ. चौधरी के पक्ष में फैसला सुनाया.

Divyanshi Singh
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