Microsoft: आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने एक ऐसा फैसला किया है जिसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया। उसका ये फैसला ह्यूमन वेस्ट यानी मानव अपशिष्ट (मानव मल-मूत्र) से जुड़ा है। बता दें माइक्रोसॉफ्ट 49 लाख टन जैविक कचरा खरीदने को लेकर ‘वॉल्टेड डीप’ नामक कंपनी से बड़ा समझौता किया है। इस समझौते के लिए माइक्रोसॉफ्ट 1.7 अरब डॉलर (करीब 14,690 करोड़ रुपये) खर्च करेगी। इस ऐलान के बाद हर कोई हैरान है कि आखिर माइक्रोसॉफ्ट कचरों पर इतना पैसा क्यो खर्च कर रही है आज हम इस स्टोरी में इसी को लेकर चर्चा करेंगे।
क्या है इसके पीछे का मकसद ?
बता दें माइक्रोसॉफ्ट स्टार्टअप कंपनी ‘वॉल्टेड डीप’ के जैविक कचरा खरीदने को लेकर 12 साल का समझौता इसलिए कर रही है ताकि वह 2030 तक वह कार्बन नेगेटिव बन जाए। इस कचरे में खाद, सीवेज स्लज और पेपर मिल के बायप्रोडक्ट शामिल हैं। माइक्रोसॉफ्ट इस कचरे को जमीन में हजारों फीट नीचे दबा देगी। इससे मीथेन और CO₂ जैसी ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में नहीं जाएंगी। माइक्रोसॉफ्ट इस पूरे प्रोजेक्ट पर 1.7 अरब डॉलर (करीब 14,690 करोड़ रुपये) खर्च करेगी।
2030 तक वह कार्बन नेगेटिव का क्या मतलब है ?
कंपनी का लक्ष्य है कि 2030 तक वह कार्बन नेगेटिव बन जाए। इसका मतलब है कि वह वातावरण से जितना कार्बन उत्सर्जित करती है, उससे ज्यादा कार्बन हटाएगी। ‘वॉल्टेड डीप’ कंपनी 2023 में शुरू हुई थी। यह कंपनी गंदे और बेकार जैविक कचरे को जुटाती है। इस कचरे में खाद, सीवेज स्लज और पेपर मिल के बायप्रोडक्ट शामिल हैं। कंपनी इस कचरे को जमीन में 5000 फीट नीचे पाइप के जरिए डालती है। जमीन के नीचे कचरा सड़ना बंद हो जाता है। इससे मीथेन और CO₂ जैसी गैसें वातावरण में नहीं फैलतीं। ‘वॉल्टेड डीप’ विधि न केवल ग्रीनहाउस गैसों को कम करती है, बल्कि मिट्टी और पानी को भी दूषित होने से बचाती है। माइक्रोसॉफ्ट इसी दोहरे लाभ के कारण इस कंपनी में निवेश कर रहा है।
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AI की वजह से उठाया कदम ?

