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कौन है वो विदेशी महिला जिसके लिए सरकार से भिड़ गए बड़े-बड़े विद्वान? UP से है खास कनेक्शन

Franceska Orsini: इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय (IGI) एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारियों ने फ्रांसेस्का ओर्सिनी (Francesca Orsini) को भारत में प्रवेश देने से इनकार कर दिया और उन्हें सोमवार-मंगलवार की रात को वापस भेज दिया गया.

Published by Divyanshi Singh

Franceska Orsini: इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय (IGI) एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारियों ने फ्रांसेस्का ओर्सिनी (Francesca Orsini) को भारत में प्रवेश देने से इनकार कर दिया और उन्हें सोमवार-मंगलवार की रात को वापस भेज दिया गया. ओर्सिनी एक मशहूर हिंदी विद्वान हैं और लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (SOAS) में प्रोफेसर एमेरिटा हैं.

क्यों किया गया ब्लैकलिस्ट? 

अधिकारियों ने बताया कि मार्च 2025 में फ्रांसेस्का ओर्सिनी को ब्लैकलिस्ट किया गया था क्योंकि उन्होंने टूरिस्ट वीजा की शर्तों का उल्लंघन किया था. इमिग्रेशन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “ओर्सिनी टूरिस्ट वीजा पर थीं, लेकिन वे ऐसे काम कर रही थीं जो वीजा की शर्तों के खिलाफ थे. इसी कारण उन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया था. ऐसा कदम अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार सामान्य प्रक्रिया है.”

‘वीजा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन’

अधिकारियों ने बताया कि ओर्सिनी को वीजा नियमों के तहत ही भारत में प्रवेश से रोका गया, क्योंकि एजेंसियों को पता चला था कि वे टूरिस्ट वीजा पर भारत में शोध कार्य कर रही थीं. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “भारत में शोध करने के लिए विदेशी नागरिक को ‘आर (R)’ वीजा लेना जरूरी होता है. टूरिस्ट वीजा पर शोध करना वीजा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है.”

अधिकारियों ने यह भी कहा कि हर संप्रभु देश की तरह भारत को भी यह अधिकार है कि वह किसी विदेशी नागरिक को प्रवेश दे या इनकार करे. अधिकारी ने कहा, “किसी व्यक्ति को एक बार ब्लैकलिस्ट कर दिया जाए तो उसे देश में प्रवेश देने से इनकार करने के लिए अलग से कोई स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं होता.”

सूत्रों ने बताया कि भारत में टूरिस्ट वीजा आसानी से दिया जाता है, लेकिन इसके तहत राजनीतिक, धार्मिक या शोध से जुड़े किसी भी कार्य की अनुमति नहीं होती. ओर्सिनी पहले भी टूरिस्ट वीजा पर शोध कार्य करती पाई गई थीं, जिसके कारण उन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया और अब मौजूदा नियमों के तहत उन्हें देश से बाहर कर दिया गया.

फ्रांसेस्का ओर्सिनी 20-21 अक्टूबर की रात को हांगकांग से दिल्ली पहुंची थीं. वे चीन में एक अकादमिक सम्मेलन में हिस्सा लेकर लौट रही थीं.

Franceska Orsini कौन हैं?

एक इंटरव्यू में फ्रांसेस्का ने भारत को लेकर बात करते हुए कहा था कि उनका दिल इलाहाबादी है. फ्रांसेस्का ‘इलाहाबाद’ को वो अपना दूसरा घर बताती हैं. फ्रांसेस्का ने हिंदी को लेकर कहा कि “मेरी हिंदी की यात्रा 41 साल पहले शुरू हुई थी, असल में मेरी मां को साहित्य में दिलचस्पी थी और मेरे घर में कई किताबें थी, मुझे कुछ भी पढ़ने की आजादी थी, इसी दौरान मेरी साहित्य में रुचि विकसित हुई.”

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फ्रांसेस्का जब 20 साल की थीं तो भारत आईं थी. वाराणसी स्थित नागरी प्रचारिणी सभा में वो इस दौरान एक महीने तक रहीं थी. इसी दौरान उन्होंने इलाहाबाद की यात्रा की. जिसके बाद उन्हे इलाहाबाद से बेहद लगाव हो गया. फ्रांसेस्का को हिंदी संस्थान में स्कॉलरशिप मिल गई. इसके बाद वो जेएनयू में आ गईं.

ओरसिनी का शोध उत्तर भारत की बहुभाषी साहित्यिक परंपराओं, विशेष रूप से अवध क्षेत्र (जिसमें इलाहाबाद भी शामिल है) की साझा हिंदी-उर्दू विरासत पर केंद्रित है.

उनकी पुस्तक, “प्रिंट एंड प्लेज़र”, विशेष रूप से इलाहाबाद की प्रिंट संस्कृति और लोकप्रिय साहित्य पर केंद्रित है. वह इलाहाबाद के साहित्यिक इतिहास का बहुभाषी दृष्टिकोण से अध्ययन करती हैं, हिंदी और उर्दू की साझा दुनिया को समझती हैं. उनकी शोध परियोजना उत्तर भारत, विशेष रूप से अवध-इलाहाबाद क्षेत्र के साहित्यिक भूगोल पर केंद्रित है.

उन्होंने ‘The Hindi Public Sphere 1920–1940: Language and Literature in the Age of Nationalism’ जैसी चर्चित किताब लिखी है. 

सरकार की आलोचना

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि ओर्सिनी को बाहर निकालना “सरकार की असुरक्षा, घबराहट और मूर्खता” को दर्शाता है. उन्होंने ओर्सिनी को “भारतीय साहित्य की महान विद्वान” बताया, जिनका काम भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद करता है.

इतिहासकार मुकुल केसवन ने भी इस फैसले की आलोचना की और कहा, “एनडीए सरकार की विद्वानों और शोध के प्रति नफ़रत हैरान करने वाली है. जो सरकार हिंदी को बढ़ावा देना चाहती है, वही फ्रांसेस्का ओर्सिनी को बैन कर रही है. यह विडंबना है.”

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