Prayagraj : आज बात करते हैं एक ऐसी महिला के बारें में जिन्होंने अपने जीवन का सारा पल अपने पति और बच्चे की खुशियों के लिए कुर्बान कर दिया. अपना सारा समय जो की उस महिला को अपने ऊपर खर्च करना था उसने उसे पुरी तरह निःस्वार्थ होकर अपने परिवार को दे दिया और अंत में उस बेचारी महिला को नसीब हुआ तो एक “बृद्धाश्रम”. प्रयागराज की रहने वाली उस महिला का नाम मीरा देवी है.
बच्चे को पालने के लिए किया दिन-रात मेहनत
मीरा देवी के पति की मृत्यु बहुत पहले हो गयी थी इस मुसीबत के बाद के उन्होंने अपने बेटे को फूल से भी अधिक स्नेह दिया. मीरा देवी ने अपने बच्चे को पालने के लिए दिन-रात मेहनत की. कभी दूसरों के घरों में जूठे बर्तन मांजे, कभी गंदे कपड़े धुले और न जाने कितने अलग-अलग काम किया.
मीरा देवी की चाहत
मीरा देवी चाहती थी कि उनका बेटा पढ़ लिख कर एक बहुत बड़ा आदमी बने. मीरा देवी से जितना बन पड़ा उन्होंने किया. बेटे ने भी मेहनत की और दवाओं का बड़ा व्यापारी बन गया. शहर में अच्छा खासा नाम भी बना लिया लेकिन इस कामयाबी में मां यानि मीरा देवी के लिए कोई जगह नहीं बच पायी. इसके बाद मीरा देवी के बेटे ने जो उनके साथ किया इसे सुन आपकी रूह कांप जाएगी.
गंगा स्नान के बहाने किया ये काम
मीरा देवी के बेटे ने गंगा स्नान कराने के बहाने मां को तैयार करे वृद्धाश्रम ले गया. इसके बाद बेटा बोला ‘मां, आप यहीं थोड़ी देर बैठिए मै दूकान कुछ दवा लेकर आता हु इंतज़ार करते-करते घंटों बीत गए, शाम हो गई, लेकिन बेटा नहीं लौटा.. तब वृद्धाश्रम की देखरेख करने वाली महिला आई और उनके कहा की आपका बेटा भी आपको छोड़ कर चला गया. इसे सुनकर पहले तो मीरा देवी को यकीन नहीं हुआ की मेरा बेटा ऐसा काम करेगा लेकिन दूसरी महिला ने बताया की की यहां सबके साथ ऐसा ही होता है.
बृद्धाश्रम की चार दीवारों में सिमटकर रह गयी हैं एक मां
फिर कुछ देर बाद मीरा देवी को भी यकीन हो गया की ये लोग सही कह रहे हैं. उनकी आंखों से आसुओं की नदियां बहने लगी. उन्होंने आसमान की ओर देखा जैसे कि भगवान से पूछ रही हों कि क्या यही है बेटे को पालने की सजा. इस दिन के लिए मैंने उसको जन्म दिया था. उनके पास अब केवल पुराने दिनों की यादें हैं. वह बचपन जब बेटा उनकी गोद में सोया करता था, जब ठंड में वह उसके लिए ऊनी स्वेटर बुनती थीं. आज मीरा देवी अपनी यादों के साथ बृद्धाश्रम की चार दीवारों में सिमटकर रह गयी हैं.

