Premanand Ji Maharaj: जीवन में सफलता, शांति और आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए केवल कड़ी मेहनत और प्रतिभा ही पर्याप्त नहीं है. सही संगति और सही मार्ग भी उतना ही आवश्यक है. हमारी भगवद्गीता और संतों की शिक्षाएं बार-बार कहती हैं कि सफलता और आध्यात्मिक आनंद का सबसे बड़ा रहस्य निंदा करने वालों, असत्य के मार्ग पर चलने वालों और मोह के जाल में फंसे लोगों से दूरी बनाए रखना है. अपने प्रवचनों में, प्रेमानंद महाराज इस गहन सत्य को सरल शब्दों में समझाते हुए कहते हैं कि दूसरों की निंदा करने वालों और उनका अनादर करने वालों की संगति करना अपने पतन को आमंत्रित करने के समान है. जीवन में सच्ची प्रगति का एकमात्र तरीका निंदा, क्रोध और अहंकार से दूर रहकर भक्ति के मार्ग पर चलना है.
निंदा करने वालों की संगति और उसका प्रभाव
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि आलोचना करना, निंदा सुनना और निंदा का समर्थन करना, ये सभी समान रूप से पाप हैं. जब कोई दूसरों की आलोचना करता है और उसके आस-पास के लोग चुपचाप सुनते हैं या उससे सहमत होते हैं, तो वे सभी समान रूप से पापी होते हैं. इस दोष के लिए सभी समान रूप से दोषी हैं. ऐसे लोगों को मिथ्या पुरुष कहा जाता है. उन्हें ईश्वर की भक्ति या भगवद्गीता के गुणगान में कोई रुचि नहीं होती. उनका जीवन केवल सांसारिक मामलों और दूसरों का अपमान करने में ही केंद्रित रहता है.
समय की शक्ति और धैर्य का महत्व
अपने प्रवचनों में प्रेमानंद महाराज समय के महत्व पर भी विशेष बल देते हैं. वे बताते हैं कि महाभारत काल में स्वयं भगवान कृष्ण ने पांडवों से कहा था, “तुम समर्थ और बलवान हो, परन्तु अभी समय अनुकूल नहीं है. यह बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास स्वीकार करो. समय आने पर इन सभी अधर्मियों और दुष्टों का विनाश होगा. धैर्य रखो.” इसी प्रकार, विदुर जी ने लाक्षागृह कांड के दौरान पांडवों को सलाह देते हुए कहा था, “सचमुच इस गुप्त गुफा को छोड़ दो और वन की ओर चले जाओ. जब तक समय अनुकूल न हो, किसी को अपने जीवित होने का पता न चलने दो. अभी प्रतिरोध करने का नहीं, बल्कि धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने का समय है.” विदुर जी की यह शिक्षा यह सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, सही अवसर की प्रतीक्षा करना ही बुद्धिमानी है.
दुष्ट लोगों का त्याग ही सफलता की कुंजी है
प्रेमानंद जी अपने दिव्य प्रवचन में यह संदेश देते हैं कि जो लोग केवल अपनी ही इच्छाओं, सुखों और यश में डूबे रहते हैं, उन्हें ईश्वर की कोई चिंता नहीं होती. वे अपना पूरा जीवन दूसरों की आलोचना और अपमान करने में बर्बाद कर देते हैं. ऐसे लोगों की संगति आत्मा को अंधकार में डुबो देती है. महाराज कहते हैं कि यदि कभी ऐसी स्थिति आए जहाँ कोई आलोचना कर सकता हो, तो अपने कान बंद कर लें और दूर चले जाएं. यह कदम न केवल हमारे मन को नकारात्मकता से बचाता है, बल्कि हमें अपने मार्ग पर चलने की शक्ति भी देता है.

