Sindoor ka Itihaas: हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं, लेकिन सिंदूर की परंपरा कब से शुरू हुई और ये सबसे पहली बार किसने लगाया था. इसको लेकर कई सवाल लोगों के मन में उठते हैं. तो आज हम इन्हीं सवालों का जवाब देंगे.
सिंदूर का महत्व
सिंदूर शादी होने के बाद हिंदू धर्म में महिलाओं के सुहाग का प्रतीक माना जाता है. ये अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और ये विवाहित महिला की शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है. यही वजह है कि हर हिंदू महिला विवाह के बाद मांग में सिंदूर जरूर लगाती है.
क्या है सिंदूर से जुड़ी पौराणिक कथा?
कई हिंदू धर्म शास्त्रों में सिंदूर लगाने के महत्व के बारे में बताया गया है. शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या की थी. जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया, तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप मे सिंदूर से मांग भरी थी. तब से ही सिंदूर को लगाने की परंपरा प्रचलित हो गई. उसके बाद से हर विवाहित महिला सिंदूर लगाने लगी और इसे पति की लंबी उम्र और सौभाग्य का प्रतीक माना जाने लगा.
Devuthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के इस उपाय से होगा आपके घर पर मां लक्ष्मी का वास
माता पार्वती ने की थी घोर तपस्या
मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कल्पों तक तपस्या की थी. भगवान की शिव के गले में जितने नरमुंडों की माला है उतने जन्मों तक पार्वती माँ ने तपस्या करी है. भगवान शिव के गले में 108 नरमुंडों की माला है मां पार्वती ने 7 जन्मों तक तपस्या करी तब जाकर के राजा हिमालय के यहां पर यह उत्पन्न हुई. दक्ष के यहां पर उसके पाश्चात्य पुत्री रूप में आई और भगवान शिव ने इनको ग्रहण किया पाणिग्रहण संस्कार किया.

