जब आप किसी यात्रा पर जाते हैं, तो रास्ते में कई शहरों के नाम पढ़ते हैं- रामपुर, जयपुर, मुरादाबाद, फिरोजाबाद. क्या आपने कभी सोचा है कि इन नामों के आखिर में ‘पुर’ या ‘बाद’ क्यों लगा होता है? ये कोई संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे इतिहास, परंपरा और भाषा से जुड़ी गहरी बातें हैं. आइए जानते हैं इन शब्दों की असली कहानी.
‘पुर’ शब्द की जड़ें संस्कृत भाषा में मिलती हैं. संस्कृत में ‘पुर’ का अर्थ होता है शहर, नगरी या कभी-कभी किला भी. ये शब्द ऋग्वेद काल से उपयोग में रहा है. उदाहरण के लिए, हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ जैसे शहरों के नाम में भी ‘पुर’ शब्द जुड़ा हुआ है. पुराने समय में जब कोई राजा नया शहर बसाता था, तो वो उसमें अपने नाम के साथ ‘पुर’ जोड़ देता था. जैसे राजा जयसिंह ने जयपुर बसाया, तो जय + पुर = जयपुर. इसी तरह कई अन्य शहरों के नाम बने- कानपुर, नागपुर, रायपुर, गोरखपुर, उदयपुर आदि.
‘बाद’ नाम के पीछे क्या कहानी है?
‘बाद’ शब्द वाले शहर भी भारत में बहुत मिलते हैं- जैसे मुरादाबाद, फिरोजाबाद, इलाहाबाद, गाजियाबाद, अहमदाबाद और हैदराबाद. ये नाम जितने सामान्य लगते हैं, उतने ही ऐतिहासिक भी हैं.
दरअसल, ‘बाद’ शब्द आया है फारसी भाषा के शब्द ‘आबाद’ से. फारसी में ‘आब’ का मतलब होता है पानी और ‘आबाद’ का मतलब होता है बसाया हुआ, यानी ऐसी जगह जहां लोग रह सकें, खेती कर सकें, जीवन जी सकें.
मुगलकाल का असर
जब भारत में मुगल शासक आए, तो उन्होंने कई शहर बसाए. नए शहरों का नाम अपने नाम के साथ ‘आबाद’ लगाकर रखते थे. जैसे अहमद शाह ने अहमदाबाद बसाया. धीरे-धीरे ‘आबाद’ शब्द का उच्चारण बदलकर ‘बाद’ हो गया.
इस तरह, मुरादाबाद (मुराद+आबाद), जलालाबाद (जलाल+आबाद), शिकोहाबाद (शिकोह+आबाद) जैसे नाम सामने आए. इससे न सिर्फ शासकों की पहचान बनी, बल्कि उन शहरों का एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी हो गया.
शहरों के नाम सिर्फ पहचान का जरिया नहीं होते, वे उस समय, संस्कृति और शासन की भी कहानी बताते हैं. ‘पुर’ और ‘बाद’ जैसे शब्द हमें याद दिलाते हैं कि भारत का इतिहास कई भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का मेल है.

