Sohan Papdi Tradition: हर दिवाली, घरों के दरवाज़े खटकते हैं और सामने आता है वही पीले बॉक्स में लिपटा गिफ्ट-सोहन पापड़ी. कभी यह मिठाई भारतीय मिठाई की दुनिया का गर्व हुआ करती थी. लेकिन, आज सोशल मीडिया और चॉकलेट की चमक-धमक के दौर में यह सिर्फ मजाक का हिस्सा बन गई है.
सोहन पापड़ी की कहानी दशकों पुरानी है. हलवाई अपनी कला और मेहनत से बेसन, घी, चीनी और इलायची को सुनहरे धागों में बदलकर यह मिठाई बनाते थे. पुरानी दिल्ली, आगरा और इंदौर की गलियों में इसकी खुशबू हर तरफ फैलती थी. इसे बनाना आसान काम नहीं था; हर खींच और मोड़ में अनुभव और धैर्य की जरूरत होती थी.
लेकिन समय बदल गया. विदेशी चॉकलेट्स और designer sweets ने दिवाली के गिफ्ट बाजार में जगह बना ली. मार्केटिंग और ग्लोबल ट्रेंड्स ने पारंपरिक मिठाइयों को “पुरानी फैशन” का लेबल दे दिया. सोशल मीडिया ने इसे मजाक का हिस्सा बना दिया, हर साल memes की बाढ़ आती है, “कोई नहीं खरीदता, बस पास करता है.”
क्यों नापसंद होती है सोहन पापड़ी?
फिर भी, सोहन पापड़ी पूरी तरह नापसंद नहीं की जा सकती. हल्की, फुर्तीली, और मुँह में आते ही घुलने वाली मिठाई, जिसे खाने से मीठा और नटी स्वाद दोनों मिलता है, लोगों को अब भी खींचती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि सोहन पापड़ी केवल मिठाई नहीं, बल्कि भारतीय मिठाई बनाने की परंपरा और संस्कृति की पहचान है. “यह एक survivor है,” कहते हैं कुछ हलवाई. “दशकों की परंपरा, मेहनत और यादें इसमें समाई हुई हैं.”
सोशल मीडिया का जमाना और ट्रेंड्स में लिपटी मिठास
इस दिवाली, कई लोग चॉकलेट और मिठाइयों के बजाय पारंपरिक मिठाईयों को फिर से अपनाने की सोच रहे हैं. और शायद इस साल, सोहन पापड़ी को सिर्फ पास करने की बजाय उसके असली स्वाद का आनंद लेने का मौका मिलेगा. खाने में हल्की और फुर्तीली, यह मिठाई हमें याद दिलाती है कि कुछ चीज़ें, चाहे सोशल मीडिया की हंसी का सामना करें या बदलते ट्रेंड्स का, हमेशा हमारे साथ रहती हैं.

