Purnia Crime: बिहार के टेटगामा गांव में एक दिल दहला देने वाली घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया है। आपको बता दें, अंधविश्वास के चलते एक ही परिवार के पांच लोगों को गांव के बीचोंबीच पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया गया। इस दुखद घटना के बाद पूरा गांव जैसे खामोश हो गया है। जानकारी के अनुसार, ज्यादातर लोग अपना-अपना घर छोड़कर चले गए हैं, और जो बचे हैं वे कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं।
किसी को भनक क्यों नहीं लगी?
घटना के बाद जब प्रमंडलीय आयुक्त राजेश कुमार गांव पहुंचे और सवाल किया कि “पांच लोगों को जलाया गया, किसी को कैसे पता नहीं चला?”, तो गांव के सभी लोग खामोश हो गए। उन्होंने वार्ड सदस्य, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मुखिया और पंचायत कर्मियों से सवाल किया कि आखिर इतने बड़े हादसे की भनक तक किसी को क्यों नहीं लगी? कमिश्नर ने यह भी कहा कि यह पूरी घटना मनरेगा भवन के पास घटी, जहां सरकारी कर्मी मौजूद रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वहां कार्यरत किसी को कुछ क्यों नजर नहीं आया? क्या यह लापरवाही नहीं, या फिर कुछ और?
अंतिम संस्कार में दिखा प्रशासन का चेहरा
मंगलवार को मृतकों का पोस्टमार्टम होने के बाद उनके शवों का दाह-संस्कार कप्तान पुल के पास किया गया। बता दें, डीएम अंशुल कुमार भी इस मौके पर खुद मौजूद थे। इतने बड़े कांड के बाद प्रशासन जागा है, लेकिन सवाल यह है कि घटना के पहले क्यों नहीं कोई ठोस कदम उठाया गया?
अशिक्षा और अंधविश्वास बना काल
कल्याण विभाग के उप निदेशक ने कहा कि इस भयावह घटना की जड़ में अशिक्षा और अंधविश्वास है। उन्होंने बताया कि जब तक ग्रामीणों को शिक्षित और जागरूक नहीं किया जाएगा, ऐसी घटनाएं रोक पाना मुश्किल है। लोगों को समझाना होगा कि अंधविश्वास किसी भी समस्या का हल नहीं, बल्कि बर्बादी की जड़ है।
क्या समय रहते रोका जा सकता था कांड?
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधि और सरकारी अमला सतर्क होता तो शायद एक परिवार को यूं न जलाया जाता। यह घटना केवल पांच लोगों की हत्या नहीं, बल्कि मानवता की हार है। अब समय है कि ऐसे मामलों से सबक लेकर जागरूकता और ज़िम्मेदारी को प्राथमिकता दी जाए। टेटगामा की घटना हमें बताती है कि अंधविश्वास आज भी लोगों की जान ले सकता है। अगर समय रहते गांव और प्रशासन सतर्क होता तो इस कांड को टाला जा सकता था। अब ज़रूरत है कि हर गांव तक शिक्षा, जागरूकता और इंसानियत की रोशनी पहुंचे।

