Supreme Court Biggest Decision: सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेष शक्तियों (आर्टिकल 142) का इस्तेमाल करते हुए युवा जोड़ों को बड़ी राहत दी है. हम ऐसा इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि, नाबालिग लड़की से प्रेम संबंध होने की वजह से लड़को को पॉक्सो एक्ट के तहत निचली अदालत से 10 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी. लेकिन, अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस सज़ा को रद्द करते हुए लड़के को बरी कर दिया है.
‘वासना नहीं, प्यार का है मामला’
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला वासना का नहीं है, बल्कि प्यार का नतीजा था. बाद में कोर्ट ने यह भी पाया कि अब यह जोड़ा खुशी-खुशी शादीशुदा है और उसमें उनका एक बच्चा भी है.
बेंच ने क्या की थी टिप्पणी?
“हम यह मानने को मजबूर हैं कि यह ऐसा मामला है जहां न्याय के लिए कानून को झुकना चाहिए.” कोर्ट ने आगे बताया कि कानून के मुताबिक लड़का दोषी था, लेकिन कानून की सख्ती से नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए.
पत्नी की करुणा भरी अपील
सुनवाई के दौरान पत्नी ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि वह अपने पति और बच्चे के साथ एक खुशहाल, सामान्य और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहती है. कोर्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि पत्नी की करुणा और सहानुभूति की पुकार को नजरअंदाज करना न्याय के हित में किसी भी हालत में नहीं होगा. इस अनोखी परिस्थिति में, व्यावहारिकता और सहानुभूति को मिलाकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना बेहद ही ज़रूरी है.
परिवार के हित की सुरक्षा के लिए शर्तें
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि लड़के को जेल में रखने से परिवार, पीड़ित और बच्चे को काफी ज्यादा नुकसान होगा. कोर्ट ने पति को बरी करते समय कुछ शर्तें भी लागू की है. जिसमें पति को अपनी पत्नी और बच्चे को कभी अकेला नहीं छोड़ना होगा.
उन्हें सम्मान के साथ पालना होगा
कोर्ट ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि अगर भविष्य में पति की तरफ से कोई चूक होती है और यह बात कोर्ट के संज्ञान में लाई जाती है, तो परिणाम पति के लिए अच्छे नहीं होंगे.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे खास मामलों में, जहां प्रेमी जोड़े शादी करके स्थिर जीवन जी रहे हैं, दयालुता और न्याय के बीच संतुलन बनाने के लिए अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए.

