Rajnath singh: ऐसा लग रहा है कि आने वाले कुछ दिन भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होंगे, इस अटकलों पर विराम लगाने वाले हैं? अगर संघ के आँगन से पर्दे के पीछे से आ रही कानाफूसी को सही माना जाए, तो राजनाथ सिंह नए अध्यक्ष पद के सबसे बड़े दावेदार बनकर उभरे हैं। जैसा कि सर्वविदित है, संघ के प्रांत प्रचारकों की तीन दिवसीय बैठक 4 से 6 जुलाई तक नई दिल्ली स्थित केशव कुंज में बुलाई गई थी, जिसमें मोहन भागवत समेत संघ के शीर्ष नेता मौजूद थे। इस बैठक में संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लगभग 233 महत्वपूर्ण स्वयंसेवकों ने भाग लिया।
संघ ने राजनाथ सिंह का नाम आगे बढ़ाया
सूत्रों की मानें तो संघ के कोर ग्रुप की बैठक में भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ। इसी कड़ी में चार-पाँच भाजपा नेताओं के नाम सामने आए। सबसे पहला नाम नितिन गडकरी का था, उसके बाद मनोहर लाल खट्टर और शिवराज सिंह चौहान के नाम सामने आए। अंत में संघ ने राजनाथ सिंह का नाम आगे बढ़ाया है। मृदुभाषी राजनाथ सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं और सरकार व संगठन की शक्ति के बीच संतुलन बनाने में भी वे उतने ही कुशल साबित होंगे। हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद राजनाथ सिंह की लोकप्रियता भी थोड़ी बढ़ी है, इसलिए बिहार-बंगाल चुनाव में पार्टी को उनके नाम का फायदा भी मिल सकता है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होने वाला है।
संघ के भीतर दो अलग-अलग धाराएँ
संघ से जुड़े सूत्र स्पष्ट करते हैं कि वर्तमान दौर में संघ में दो अलग-अलग धाराओं का उदय देखा जा सकता है। इनमें से एक धारा का प्रचलित नाम ‘परंपरागत’ है जो संघ की मूल भावनाओं को दृढ़ता से व्यक्त करती है। कहा जाता है कि इस धारा का प्रतिनिधित्व स्वयं सरसंघचालक मोहन भागवत करते हैं। इस धारा के लोगों का मानना है कि संघ को उन मूल्यों और उद्देश्यों से बहुत अधिक विचलित नहीं होना चाहिए जिनके लिए इसकी स्थापना हुई थी। इसलिए, इस धारा के लोग हिंदुत्व, समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते हैं, योगी आदित्यनाथ को इस धारा के चमकते सितारे के रूप में देखा जा सकता है। उन्हें संघ का इतना प्रबल समर्थन प्राप्त है।
संघ में नंबर दो माने जाने वाले दत्तात्रेय होसबोले थोड़ी उदार विचारधारा को आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं। यह आरएसएस का वह समूह है जो मानता है कि वर्तमान समय में इतना कठोर रुख काम नहीं करेगा। अपने 100वें वर्ष में, आरएसएस को ‘सर्वधर्म समभाव’ के साथ एक उदार चेहरा प्रस्तुत करना होगा। सिर्फ़ हिंदुत्व से काम नहीं चलेगा। ज़रूरत पड़ने पर मुसलमानों और दलितों को भी आरएसएस की विचारधारा से जोड़ना होगा। यह समूह दलितों और पिछड़ों को आरएसएस और भाजपा की विचारधारा के क़रीब लाने की वकालत करता रहा है। मौजूदा भाजपा नेतृत्व भी इसी धारा का समर्थक माना जा सकता है। भाजपा की दिलचस्पी राजनाथ सिंह की नए भाजपा अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी में भी है।

