Categories: देश

2.5 अरब साल पुरानी अरावली क्या 2059 तक बन जाएगी इतिहास? यहां पढ़िए इस पर्वतमाला की बर्बादी की इनसाइड स्टोरी

क्या 2059 तक इतिहास बन जाएगी दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला? जानिए अरावली पर सुप्रीम कोर्ट की रोक और विशेषज्ञों की बड़ी चेतावनी क्या है?

Published by Shivani Singh

अरावली की पहाड़ियों को लेकर जारी विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर खुद ही ध्यान आकर्षित किया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि 20 नवंबर को दिया गया पिछला आदेश अगली सुनवाई तक प्रभावी नहीं होगा जिसके बाद फिलहाल उन निर्देशों पर रोक लग गई है. इस मामले की अगली सुनवाई अब 21 जनवरी 2026 को तय की गई है. 

विवाद का मुख्य कारण

अरावली को लेकर यह विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने पहाड़ी क्षेत्र की नई परिभाषा पेश कर दी. जानकारों को डर है कि इस नई परिभाषा की आड़ में तलहटी वाले इलाकों में खनन गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नई परिभाषा आने से पहले ही यह श्रृंखला केवल खनन ही नहीं, बल्कि कई अन्य मानवीय हस्तक्षेपों के कारण खत्म होने की कगार पर पहुँच चुकी थी.

Related Post

क्या कहता है शोध? (2059 तक का अनुमान)

करीब 2.5 अरब साल पुरानी इस पर्वत प्रणाली को लेकर राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक चौंकाने वाली चेतावनी जारी की है. अध्ययन के अनुसार यदि वर्तमान स्थितियां बनी रहीं, तो 2059 तक मानवीय बस्तियों के कारण 16,360 वर्ग किमी से अधिक जंगल खत्म हो जाएंगे

विशेषज्ञों की राय क्या है?

पर्यावरण विज्ञान विभाग के शोधकर्ता आलोक राज और प्रोफेसर लक्ष्मी कांत शर्मा के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में कई प्रमुख बातें सामने आई हैं. डेटा के आधार पर टीम ने 1975 से 2019 तक यानी 44 साल में सैटेलाइट डेटा और गूगल अर्थ इंजन जैसे आधुनिक मॉडल्स का उपयोग किया. इन वर्षों में अरावली ने अपना लगभग 7.6% वन क्षेत्र (करीब 5,772 वर्ग किमी) खो दिया है. जिसमें से बड़ा हिस्सा बंजर भूमि और बस्तियों में तब्दील हो गया है. मॉडल अनुमान बताते हैं कि 2059 तक अरावली का लगभग 21.6% जंगल सीधे तौर पर रिहायशी बस्तियों में बदल जाएगा.

इकोलॉजिकल कॉरिडोर पर हो रहा प्रहार

प्रोफेसर लक्ष्मी कांत शर्मा के अनुसार अरावली के ऊपरी, मध्य और निचले, तीनों ही हिस्सों में तेजी से बदलाव आ रहे हैं. उत्तर में दिल्ली-NCR से लेकर दक्षिण में उदयपुर और सिरोही तक शहरी विस्तार और सड़क नेटवर्क उस प्राकृतिक गलियारे (Ecological Corridor) को नष्ट कर रहे हैं, जो उत्तर-पश्चिमी भारत की पारिस्थितिक रीढ़ माना जाता है. खेती, खनन और बढ़ते शहरों का यह दबाव न केवल हरियाली को निगल रहा है बल्कि अरावली के अस्तित्व को भी संकट में डाल रहा है.

Shivani Singh
Published by Shivani Singh

Recent Posts

New Year 2026: नए साल के जश्न पर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने फिर लगाया ‘फतवा’ का पहरा, मुस्लिम युवाओं को दे दी ये हिदायत

New Year 2026 Celebration News: अखिल भारतीय मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी…

December 29, 2025

Bihar Librarian Recruitment: बिहार 5500 लाइब्रेरियन की होगी भर्ती, BPSC TRE-4 की नियुक्ति भी जल्द, शिक्षा मंत्री की घोषणा

Bihar Librarian Vacancy: बिहार के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने बताया कि कुछ साल पहले…

December 29, 2025

बांग्लादेशी सिनेमा में भारत के 6 सितारों का जलवा! 1 बना सुपरस्टार और सालों तक किया राज

भारतीय सिनेमा के कलाकार अब सिर्फ बॉलीवुड या टॉलीवुड तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे…

December 29, 2025

2025 के बेस्ट बॉलीवुड कपल आउटफिट्स! जिनसे आप भी फैशन सीख सकते हैं

रणबीर कपूर-आलिया भट्ट से लेकर रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण तक, जब सेलिब्रिटी कपल्स और उनके आउटफिट्स…

December 29, 2025

रूस-यूक्रेन युद्ध को जल्द खत्म कराएंगे डोनाल्ड ट्रंप! पुतिन से बात करने के बाद जेलेंस्की से की मुलाकात, क्या हुई बात?

Russia-Ukraine War News: डोनाल्ड ट्रंप और जेलेंस्की के बीच फ्लोरिडा में तीन घंटे से ज्यादा…

December 29, 2025