Kartik Purnima Vrat Katha: आज कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि है और आज के दिन देव दिवाली का त्योहार मनाया जाता है और इस त्योहार को हिंदू धर्म में बेहद खास माना जाता हैं. इस दिन लोग भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, दीप जलाए जलाते हैं, गंगा स्नान करते हैं और कई लोग इस दिन व्रत भी करते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस था, जिसका वध करना किसी के लिए भी असंभव था. क्योंकि वह तीन राक्षसों से मिलकर बना था, इसलिए ही उसका नाम त्रिपुरासुर था. त्रिपुरासुर ने कड़ी तपस्या के बाद ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसे कोई भी व्यक्ति एक ही बाण से मार सकेगा, जब वे तीनों एक सीध में हो.
भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कैसे किया? (Dev Deepawali Ki Kahani)
पूरानी कथाओं के अनुसार, तारकासुर के 3 बेटे थे, जिनका नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली था. इन तीनों राक्षसों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था. क्योंकि उसे वरदान मिला था कि वह शिव पुत्र के हाथों ही मारा जायेगा. तारकासुर के वध से उसके तीनों बेटे दुखी हो गए और उनमें बदले की भावना आ गई. तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली तीनों तारकाक्ष ने ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और ब्रह्म देव के प्रकट होते ही तीनों ने उनसे अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी जरूर होगी. ये वरदान मैं नहीं दे सकते कुछ और मांग लो. इस पर तीनों भाइयों ने कहा कि जब वे तीनों एक सीध में हों, अभिजीत नक्षत्र हो और एक ही बाण से कोई तीनों को एक साथ मारे, तभी ही इनकी मृत्यु हो. ब्रह्म देव ने उन तीनो को यह वरदान दे दिया. ब्रह्म से ये वरदान पाने का बाद तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली यानि त्रिपुरासुर बेहद शक्तिशाली हो गए और तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया. त्रिपुरासुर का अत्याचार हर दिन बढ़ने लगा. त्रिपुरासुर का अत्याचार दिन पर दिन बढ़ता चला गया. उन्होंने देवताओं को भी नहीं बख्शा और प्रताड़ित किया. तीनों लोकों में सभी त्राहिमाम करने लगे और महादेव की शरण में जा पहुंचे. उन्होंने शिव जी से त्रिपुरासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करी. भगवान शिव ने भी सभी देवताओं को त्रिपुरासुर के वध का आश्वासन दिया और कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने पृथ्वी को अपना रथ बनाया, जिसके पहिए सूर्य और चंद्रमा को बनाया भगवान विष्णु बाण बनें, मेरु पर्वत धनुष और वासुकी नाग उसकी डोरी बने अभिजीत नक्षत्र में जब त्रिपुरासुर यानि तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली एक सीध में आए तो महादेव ने उस धनुष और बाण से उसका वध कर दिया और तीनों लोकों को त्रिपुरासुर के अत्याचार से मुक्ति मिली. राक्षस त्रिपुरासुर का वध करने की वजह से भगवान शिव को त्रिपुरारी का नाम दिया गया.
देव दीपावली को काशी में मनाते हैं धूमधाम से
इसी खुशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी और देवता शिव की नगरी काशी में आते है गंगा स्नान करते हैं. शिव पूजाकरते हैं और पवित्र की नदीं या के तट पर दीप जलाते हैं. देव दीपावली को वाराणसी में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं.
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