मुगलों के हरम में रात को जलती थी एक ही मशाल! अंधेरे में होता था कौन-सा काम?
Mughal Harem Dark Secrets: मुगलों के हरम के कई ऐसे राज हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. यही वजह है कि शानो-शौकत वाले हरम के जब-जब काले सच बाहर आते हैं तब-तब लोग हैरान रह जाते हैं. इन्हीं में एक यह भी सच है कि मुगलों के हरम में रात के समय एक ही मशाल जला करती थी. आइए, यहां जानते हैं कि इसके पीछे की क्या वजह होती थी.
रात होते ही अंधेरे में डूब जाता था हरम
सोने-चांदी, हीरे और जेवरों से मुगलों के खजाने भरे रहते थे. लेकिन, रात जैसे ही होती थी वैसे ही किले से लेकर हरम तक, चारों तरफ अंधेरा पसर जाता था. कहा जाता है कि हरम के गलियारों में तो रात-रातभर सिर्फ एक ही मशाल रोशनी फैलाती थी.
क्यों एक ही मशाल जलती थी?
मुगल साम्राज्य भले ही शानो-शौकत के लिए जाने जाते हैं. लेकिन, उस समय बिजली नहीं थी, न ही लालटेन या माचिस मौजूद थी. ऐसे में मुगलों के लिए रात के समय रोशनी का इंतजाम करना एक बड़ा ही मुश्किलों से भरा काम होता था.
रात को होती थीं साजिशें!
अंधेरे और सन्नाटे का फायदा उठाकर मुगल काल में बादशाह के खिलाफ कई साजिशें और चालें रची जाती थीं. जिसमें दरबारियों से लेकर हरम की औरतें शामिल होती थीं.
बादशाह करता था मनोरंजन
मुगल हरम में रात के अंधेरे में बादशाह अपने मनोरंजन के बाद पसंदीदा औरत के साथ बिस्तर पर जाता था. बादशाह पूरी अय्याशी करता था और सुबह तक कई बार उसे पता भी नहीं होता था कि वह रात में किस औरत के साथ था.
कैसे होती थी मुगल किलों में रोशनी?
इतिहासकार किशोरी शरण लाल ने अपनी किताब The Mughal Harem में लिखा है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता था, तब एक सफेद चमकदार पत्थर के गोल टुकड़े को सूरज के सामने रखते थे. यह पत्थर गर्म हो जाता था और आग पकड़ लेता था. इसी पत्थर के करीब रूई को रखा जाता था, जिससे आग जलती थी.
एक साल तक संभाली जाती थी अग्नि!
वहीं, पत्थरों और उससे निकलने वाली आग को एक साल तक संभालकर रखा जाता था. कमाल की बात तो यह है कि एक साल तक आग को एंजिगिर नाम के बर्तन में रखा जाता था.
मुगल काल में रात की रोशनी थी अहम
इस आग से ही किले और हरम को रोशन किया जाता था. आग और साधनों की बर्बादी न हो, यही वजह थी कि किलों में दूर-दूर मशाल लगी होती थी. साथ ही हरम के गलियारों को रोशन करने के लिए भी एक मशाल जलाई जाती थी.
चांद की रोशनी
मुगल काल में चांद की रोशनी का पूरा फायदा लिया जाता था. जैसे-जैसे चांद की रोशनी बढ़ती थी वैसे-वैसे मशालों और दीयों को बुझा दिया जाता था. वहीं, पूर्णिमा पर एक कमरे या गलियारे में एक ही मशाल जला करती थी.
कहां जलती थी हरम में मशाल?
इतिहासकार किशोरी शरण ने अपनी किताब में लिखा है, अकबर और जहांगीर के समय हरम में बादशाह की मुख्य रानी के कमरे के सामने एक खंबे पर मशाल जलाई जाती थी. हालांकि, औरंगजेब के समय तक, हर कमरे और गलियारे में रोशनी की मशालें जलने लगी थीं.