लाल रंग, ढोल-नगाड़े और देवी मां… क्यों खेलती हैं महिलाएँ लाल रंग में ये अनोखा खेल?
Sindoor Khela: दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर खेला महिलाओं के लिए बहुत खास होता है, यह सिर्फ रंगों का खेल नहीं है, बल्कि परिवार और दोस्तों के बीच प्यार, सम्मान और खुशियों का प्रतीक है. हर साल महिलाएं इसे बड़े आनंद और श्रद्धा के साथ मनाती हैं. सिंदूर खेला का मतलब केवल देवी दुर्गा की पूजा करना नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर खुश रहना और रिश्तों को मजबूत बनाना भी है.
त्योहार की रौनक
दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर खेला का अलग ही माहौल होता है, पंडाल सजते हैं, ढोल-नगाड़े बजते हैं और महिलाएँ ट्रेडिशनल लिबास में देवी मां की आराधना करती हैं.
लाल साड़ियों का अट्रैक्शन
इस मौके पर महिलाएँ खासतौर पर लाल या सफेद-लाल बॉर्डर वाली साड़ियाँ पहनती हैं. काजल, बिंदी और चूड़ियाँ मिलकर उनकी खूबसूरती को और निखार देती हैं.
देवी को अर्पित सिंदूर
सबसे पहले महिलाएँ मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं, माना जाता है कि इस विधि से मां का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है.
रिश्तों में अपनापन
जब महिलाएँ एक-दूसरे के गालों और माथे पर सिंदूर लगाती हैं तो यह उनके बीच प्यार और अपनापन का प्रतीक बन जाता है, यही इस रस्म की असली खूबसूरती है.
तस्वीरों की चमक
सिंदूर खेला का दृश्य इतना मनमोहक होता है कि कैमरे में कैद हर तस्वीर त्योहार की एनर्जी और रंगों की चमक को बखूबी दिखाती है, यह पलों को यादगार बना देता है.
भावनाओं का संगम
यह रस्म जहां उत्सव का हिस्सा है, वहीं मां दुर्गा की विदाई का दर्द भी समेटे हुए है, यही वजह है कि इसमें भक्ति और भावनाओं का अद्भुत संगम दिखाई देता है.
समाज में महत्व
सिंदूर खेला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक मिलन का भी अवसर है महिलाएँ यहां एक-दूसरे से मिलती हैं और त्योहार की खुशी को साथ बांटती हैं.
नई पीढ़ी का जुड़ाव
आज की युवा पीढ़ी भी इस परंपरा से जुड़कर अपने सांस्कृतिक मूल्यों को समझ रही है, इससे यह रस्म सिर्फ अतीत की नहीं, बल्कि भविष्य की भी धरोहर बन रही है.