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दिल्ली के अलावा किन-किन राज्यों में प्राइवेट स्कूलों के फीस को रेगुलेट करने के लिए कानून है?

Delhi New Law: दिल्ली में अब प्राइवेट स्कूल में फ़ीस को रेगुलेट करने के लिए नया कानून लाया गया है. ऐसे में आइए अन्य राज्यों में प्राइवेट स्कूलों की फीस को रेगुलेट करने के लिए लागू कानूनों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं.

Published by Sohail Rahman

School Fees Regulation Act: पिछले सप्ताह लेफ्टिनेंट-गवर्नर वीके. सक्सेना द्वारा दिल्ली स्कूल शिक्षा (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) एक्ट, 2025 को नोटिफ़ाई करने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में फीस रेगुलेशन का एक नया सिस्टम शुरू हो गया है. यह कानून, जिसमें फीस बढ़ोतरी की ऑडिट के लिए तीन-स्तरीय समिति संरचना अनिवार्य है, माता-पिता संघों और निजी स्कूलों के बीच मनमानी फीस को लेकर सालों से चल रहे टकराव के बाद आया है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस नए एक्ट का एक मुख्य प्रावधान यह है कि डिस्ट्रिक्ट कमेटी के दखल देने से पहले कम से कम 15 प्रतिशत प्रभावित माता-पिता का शिकायत का समर्थन करना जरूरी है. जिसकी वजह से पहले से ही बहस छिड़ गई है. जिसमें माता-पिता संघों का तर्क है कि स्कूल मैनेजमेंट के खिलाफ ऐसा समर्थन जुटाना व्यावहारिक रूप से मुश्किल हो सकता है.

दिल्ली सरकार के इस नए कानून में क्या प्रावधान है? (What provisions are included in this new law passed by the Delhi government?)

दिल्ली पहली सरकार नहीं है जिसने निजी स्कूलों की फीस को सीमित या रेगुलेट करने की कोशिश की है. तमिलनाडु के फीस-निर्धारण मॉडल से लेकर गुजरात की कड़ी सीमाओं तक भारत भर के कई राज्यों ने शिक्षा में व्यवसायीकरण को रोकने के लिए विभिन्न कानूनी ढांचों के साथ प्रयोग किया है. अलग-अलग राज्य स्कूल फीस को कैसे रेगुलेट करते हैं, उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और निजी स्कूलों के प्रशासन में दखल देने की राज्य की शक्ति के बारे में अदालतों ने क्या फैसला सुनाया है?

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सुप्रीम कोर्ट के 2 फैसलों में क्या है? (What do the two Supreme Court judgments say?)

भारत में निजी स्कूलों की फीस का रेगुलेशन दो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बीच संतुलन बनाना चाहिए. ऐतिहासिक TMA Pai Foundation (2002) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अपनी फीस संरचना तय करने की स्वायत्तता है. हालांकि, कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया कि यह स्वायत्तता पूर्ण नहीं है: स्कूलों को विकास के लिए उचित अधिशेष का अधिकार है, लेकिन मुनाफ़ाखोरी और कैपिटेशन फीस पर सख्ती से रोक है. यह अधिशेष संस्थान के विस्तार और उसकी सुविधाओं में सुधार के लिए है, जिससे शिक्षा को पूरी तरह से व्यावसायिक गतिविधि से अलग किया जा सके.

कोर्ट ने बाद में Modern School बनाम Union of India (2004) मामले में स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों के पास शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए फीस को रेगुलेट करने का अधिकार है. इसी कानूनी दायरे में राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं.

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तमिलनाडु में प्राइवेट स्कूलों की फीस को कैसे रेगुलेट किया जाता है? (How are private school fees regulated in Tamil Nadu?)

तमिलनाडु की बात करें तो यह राज्य इस मामले में सबसे आगे था, जिसने 2009 में तमिलनाडु स्कूल्स (फीस कलेक्शन का रेगुलेशन) एक्ट लागू किया. यह मॉडल शायद सबसे सख्त है. शिकायतों का इंतज़ार करने के बजाय एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज की अगुवाई में राज्य की बनाई कमेटी खुद ही राज्य के हर प्राइवेट स्कूल के लिए फीस तय करती है, जो तीन साल के लिए वैलिड होती है.

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गुजरात में प्राइवेट स्कूलों की फीस को कैसे रेगुलेट किया जाता है? (How are private school fees regulated in Gujarat?)

साल 2017 में गुजरात ने गुजरात सेल्फ-फाइनेंस्ड स्कूल्स (फीस का रेगुलेशन) एक्ट पेश किया, जिसने फीस पर एक पैसे की लिमिट लगा दी. एक्ट ने खास लिमिट तय की – जैसे प्राइमरी के लिए 15,000 रुपये, सेकेंडरी के लिए 25,000 रुपये, और हायर सेकेंडरी स्कूलों के लिए 27,000 रुपये. जो स्कूल इन लिमिट से ज्यादा फीस लेना चाहते हैं, उन्हें अपने खर्चों को सही ठहराने के लिए ऑडिटेड अकाउंट्स के साथ फीस रेगुलेटरी कमेटी से संपर्क करना होगा.

महाराष्ट्र में प्राइवेट स्कूलों की फीस को कैसे रेगुलेट किया जाता है? (How are private school fees regulated in Maharashtra?)

महाराष्ट्र और राजस्थान की बात करें तो ये दोनों राज्य एक फीस रेगुलेशन मॉडल को फॉलो करते हैं जो राज्य के दखल से पहले अंदरूनी सहमति पर काफी हद तक निर्भर करता है. महाराष्ट्र की बात करें तो इस राज्य में महाराष्ट्र एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन्स (फीस का रेगुलेशन) एक्ट 2011 के तहत स्कूल मैनेजमेंट एक फीस स्ट्रक्चर का प्रस्ताव रखता है जिसे पेरेंट-टीचर एसोसिएशन (PTA) की एग्जीक्यूटिव कमेटी से मंजूरी मिलनी चाहिए. अगर स्कूल के प्रस्ताव और PTA की मंज़ूरी के बीच 15 परसेंट से कम का अंतर है, तो स्कूल का फैसला ही माना जाएगा. सरकार की डिविजनल फीस रेगुलेटरी कमेटी के दखल के लिए कुल पेरेंट्स में से कम से कम 25 परसेंट को शिकायत करनी होगी.

अगर दिल्ली के नए कानून को देखें तो इसी लॉजिक से कुछ लिया गया है, लेकिन लिमिट कम कर दी है. महाराष्ट्र में जहां 25 प्रतिशत पेरेंट्स को आपत्ति जताने की जरूरत है, वहीं दिल्ली में सिर्फ 15 प्रतिशत पेरेंट्स की जरूरत है.

राजस्थान में प्राइवेट स्कूलों की फीस को कैसे रेगुलेट किया जाता है? (How are private school fees regulated in Rajasthan?)

राजस्थान का 2016 का एक्ट भी इसी तरह काम करता है, जिसमें पेरेंट्स और टीचर्स की एक स्कूल-लेवल फीस कमेटी होती है. हालांकि, इसे लागू करने में सुस्ती रही है. राजस्थान हाई कोर्ट ने इस साल मई में राज्य सरकार की इस बात के लिए खिंचाई की थी कि एक्ट पास होने के नौ साल बाद भी वह फीस विवादों के लिए अपील करने वाली बॉडी (रिविजन बॉडी) बनाने में नाकाम रही.

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