Kawad Yatra 2025: जानिए कितने प्रकार की होती है कावड़ यात्रा और क्या होते हैं इसके नियम?
Kawad Yatra 2025: पवित्र श्रावण मास की शुरुआत हो चुकी है ऐसे में लाखों भक्त गंगाजल लेकर कावड़ यात्रा करेंगे, कावड़ यात्रा के नियम भी बहुत कठिन होते हैं और इसके कई प्रकार होते हैं आईए जानते हैं इसके नियम और प्रकारों के बारे में..
कावड़ यात्रा
ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकला हुआ विष धारण कर लिया था इसकी वजह से उनका शरीर नीला पड़ गया था तथा उनकी गर्मी के शांत करने के लिए देवताओं ने उनका जला अभिषेक किया था, दूसरी मान्यता यह भी है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कावड़ यात्रा निकाली थी।
त्रेता युग
वहीं दूसरी ओर कावड़ यात्रा को लेकर कुछ लोग रावण से संबंध जोड़ते हैं क्योंकि त्रेता युग में भगवान शिव को लंका में स्थापित करने के लिए रावण भी हरिद्वार से गंगाजल को कावड़ में लेकर गया था तब से सावन में भगवान शिव के भक्त कावड़ यात्रा निकालते हैं, यह मुख्य रूप से चार प्रकार की होती है।
साधारण कांवड़
यह यात्रा समान रूप से और व्यापक जन समूह द्वारा निकाली जाती है जिसमें भक्त गंगाजल लेकर शिव धाम तक पैदल यात्रा करते हैं ,लेकिन उन्हें रुकने और विश्राम करने की छूट होती है, इसमें आप गंगाजल को जमीन पर नहीं रख सकते लेकिन स्टैंड पर रखकर आराम कर सकते हैं।
डाक कांवड़
यह कांवड़ यात्रा सबसे कठिन यात्रा मानी जाती है, क्योंकि इसमें भक्त एक बार जल भरने के बाद शिव मंदिर तक बिना विश्राम किया दौड़ते हुए या तेज चलते हुए पहुंचता है, इसमें भक्तों की एक पूरी टीम होती है जो बारी-बारी से कावड़ लेकर दौड़ती है।
खड़ी कावड़
यह भी एक मुश्किल यात्रा होती है इसमें दो भक्त एक साथ चलते हैं जब एक थक जाता है तो दूसरा कावड़ उठाकर चलता है इसमें भी आप कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते हैं।
दंड कांवड़
यह एक तरह का मुश्किल से भरी यात्रा होती है, इसमें भक्त दंड बैठक करते हुए अपनी इस यात्रा को पूरी करते हैं, जिसको पूरा करने में करीब एक माह तक का समय लग जाता है।
कावड़ यात्रा का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार चातुर्मास में पढ़ने वाले कावड़ यात्रा का बहुत ही बड़ा महत्व माना जाता है ऐसी मान्यता है कि यह यात्रा कर के आप भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं।
Disclaimer
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