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बस्तर का दशहरा नहीं दिखाता रावण की हार, बल्कि देवी शक्ति की होती है जयकार

भारत की पहचान उसकी विविधता और सांस्कृतिक परंपराओं से होती है.यहाँ हर त्यौहार के पीछे एक गहरी मान्यता और धार्मिक महत्त्व छुपा होता है.दशहरा पूरे देश में प्रचलित त्योहार है, जिसे आमतौर पर राम-रावण युद्ध और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। लेकिन छत्तीसगढ़ और उसके आस-पास के आदिवासी इलाकों में मनाया जाने वाला राजा दशहरा इस सामान्य धारणा से बिल्कुल अलग है। यह त्यौहार न तो राम और रावण की कथा से जुड़ा है और न ही केवल पौराणिक प्रसंगों तक सीमित है. इसे देख कर साफ महसूस होता है कि जब विश्वास और परंपरा मिलते हैं तो समाज कितनी मजबूती से जुड़ जाता है.


By: Komal Singh | Last Updated: October 2, 2025 6:50:04 AM IST

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राम-रावण से अलग परंपरा

आमतौर पर दशहरे को रामायण की कथा से जोड़ा जाता है, जहाँ राम रावण का वध करते हैं. लेकिन राजा दशहरा पूरी तरह अलग है. यह पर्व राम-रावण युद्ध से नहीं, बल्कि शक्ति की देवी की पूजा से जुड़ा है.

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देवी दंतेश्वरी की उपासना

राजा दशहरे का केंद्र है दंतेश्वरी माता, जिनका मंदिर जगदलपुर में स्थित है. यह मंदिर शक्ति पीठों में गिना जाता है और आदिवासी समाज इसे अपनी कुलदेवी का स्थान मानता है.

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आदिवासी समाज का सबसे बड़ा पर्व

राजा दशहरा आदिवासी समाज के लिए केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक पहचान का सबसे बड़ा अवसर है. इस दिन विभिन्न गाँवों और समुदायों के लोग एक जगह जुटते हैं और अपनी परंपराओं के अनुसार पूजा और अनुष्ठान करते हैं.

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75 गाँवों से आती झांकियाँ

इस पर्व की सबसे खास बात है कि इसमें 75 से ज्यादा गाँवों के लोग शामिल होते हैं. हर गाँव अपने तरीके से देवी की झांकी तैयार करता है और इसे शोभायात्रा के रूप में प्रस्तुत करता है.

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सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

इस पर्व की सबसे खास बात है कि इसमें 75 से ज्यादा गाँवों के लोग शामिल होते हैं. हर गाँव अपने तरीके से देवी की झांकी तैयार करता है और इसे शोभायात्रा के रूप में प्रस्तुत करता है.

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

राजा दशहरे की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. कहा जाता है कि जब बस्तर रियासत की स्थापना हुई, तब से ही दंतेश्वरी माता को कुलदेवी माना गया. राजा हर साल देवी की पूजा करते थे और धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे समाज का त्योहार बन गई.

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धार्मिक पर्यटन का केंद्र

राजा दशहरे के अवसर पर जगदलपुर धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन जाता है. हजारों लोग यहाँ पहुँचते हैं, जिससे स्थानीय व्यापार और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है.

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Disclaimer

प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है.