पुरी जगन्नाथ मंदिर में एकादशी पर चावल खाना क्यों नहीं माना जाता पाप? जानिए वो रहस्य जो हजारों साल से भक्तों को चौंका रहा है
हिंदू धर्म में एकादशी का एक विशेष महत्व है, लोग इस दिन व्रत रखते हैं और चावल खाना पूर्ण रूप से वर्जित मानते हैं लेकिन हिंदू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में एक उड़ीसा के पूरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में इस दिन चावल का भोग चढ़ता है इसके पीछे एक विशेष नियम है आइए जानते हैं इसके बारे में…
एकादशी और चावल
लोग एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करते और अधिकांशत घरों में चावल बनता भी नहीं है ऐसी मान्यता है कि चावल खाने से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती, लेकिन जगन्नाथ मंदिर में एकादशी के दिन चावल खाने के परंपरा है।
एकादशी के दिन क्यों नहीं खाते चावल ?
मान्यताओं के अनुसार विष्णु पुराण में कहां गया है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पुण्य फल नहीं मिलता, दूसरी मान्यता यह है कि महर्षि मेधा ने शती के गुस्से से बचने के लिए अपने शरीर का इसी दिन त्याग किया था और उनका जन्म चावल के रूप में हुआ था इसलिए भी लोग चावल नहीं खाते हैं।
ब्रह्मा जी और महा प्रसाद
मान्यताओं और कथाओं के अनुसार एक समय ब्रह्मा जी को जगन्नाथ का महाप्रसाद आने की इच्छा हुई और वह मंदिर पहुंचे लेकिन वहां प्रसाद खत्म हो चुका था, यहां वहां देखने के बाद एक पत्तल में थोड़े से चावल के दाने दिखाई दिए जिसे उन्होंने खा लिया।
एकादशी का दिन
जिस दिन ब्रह्मा जी ने महाप्रसाद के रूप में चावल को खाया था वह एकादशी का दिन था और उसी दिन से चावल खाने की परंपरा शुरू हो गई।
महाप्रसाद और एकादशी
जब ब्रह्मा जी या चावल खा रहे थे तभी माता एकादशी वहां प्रकट हुई और उन्होंने हंसते हुए कहा आज से यहां के महाप्रसाद में एकादशी का कोई भी नियम लागू नहीं होगा।
एकादशी माता का उल्टा लटकाना
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाप्रसाद का निरादर करने के लिए विष्णु जी ने मंदिर में माता एकादशी को बंधक बनाकर उल्टा लटका रखा है।
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