एक गीत जिसने फिल्मों की दुनिया बदल दी,Mughal-e-Azam की अनकही कहानी के बाद, सुनकर आप भी देंगे मिसाल
भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम युग सिर्फ़ चमकदार परदे तक सीमित नहीं था, बल्कि उसके पीछे अनगिनत संघर्ष, जागी हुई रातें और समर्पण की कहानियाँ छुपी थीं। ऐसी ही एक कहानी है मुगल-ए-आजम के उस प्रसिद्ध गीत की, जिसे संगीतकार नौशाद और गीतकार शकील बदायूंनी ने एक पूरी रात जागकर रचा। यह गीत सिर्फ़ एक धुन नहीं था, बल्कि पूरी फिल्म की आत्मा था। कहते हैं, उस रात दोनों ने ख़ुद को एक कमरे में बंद कर लिया और तब तक बाहर नहीं निकले जब तक गीत तैयार नहीं हो गया।
नौशाद लिखते समय शब्दों की मुश्किल
नौशाद ने ठान लिया कि जब तक गीत तैयार न हो, वे कमरे से बाहर नहीं निकलेंगे। उन्होंने खुद को और शकील को एक कमरे में कैद कर लिया। यह ताला सिर्फ दरवाजे पर नहीं, बल्कि उनकी सोच पर भी लगा था ताकि बाहर की दुनिया का कोई शोर अंदर तक न पहुँचे।
नौशाद के बचपन की याद
थकान और असफलता के बीच अचानक नौशाद को अपने बचपन की एक लोकधुन याद आ गई। यह धुन बहुत साधारण थी, मगर उसमें एक मासूमियत और गहराई छिपी थी।
बचपन की धुन का जादू
थकान और असफलता के बीच अचानक नौशाद को अपने बचपन की एक लोकधुन याद आ गई। यह धुन बहुत साधारण थी, मगर उसमें एक मासूमियत और गहराई छिपी थी।
शकील की कलम का जादू
नौशाद की धुन पर शकील की कलम चल पड़ी। उन्होंने शब्दों में वह भावनाएँ उकेरीं, जो शाही माहौल और प्रेम की तीव्रता दोनों को समेटे हुए थीं।
कहानी का हिस्सा
यह गीत सिर्फ संगीत नहीं था, बल्कि कहानी का हिस्सा था। दृश्य में मधुबाला को अकबर को उकसाना था।वह भी सीधे नहीं, बल्कि शालीनता और इशारों में। ऐसे में गीत की पंक्तियाँ दोहरे अर्थ लिए हुए होनी चाहिए थीं।
गाने की सफलता
पूरी रात जागने के बाद जब पहली किरण कमरे में दाखिल हुई, तब तक गीत तैयार हो चुका था। थके हुए चेहरे अचानक संतोष और खुशी से खिल उठे। उन्होंने सिर्फ एक गीत नहीं बनाया,उन्होंने इतिहास रच दिया है।
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