July 27, 2024
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Uttarkashi Rescue Operation: जीपीआर पर उठाए सवाल, जानें क्यों रुका था रेस्क्यू ऑपरेशन

  • WRITTEN BY: Shiwani Mishra
  • LAST UPDATED : December 1, 2023, 6:38 pm IST

नई दिल्लीः उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की निर्माणाधीन सिल्कयारा टनल में फंसे मजदूरों का रेस्क्यू ऑपरेशन(Uttarkashi Rescue Operation) तो समाप्त हो गया है लेकिन इसे लेकर कई सवाल भी खड़े हो गए हैं। इतने बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन को पूरा करने में अमेरिकी ऑगर मशीन का अहम योगदान रहा। जिसने 48 मीटर तक खुदाई करने के साथ-साथ टनल में 60 मीटर तक पाइप पहुंचाने में मदद की, जिसके जरिए इन मजदूरों को इस खौफनाक टनल से बाहर निकाला गया।

रिपोर्ट को बताया गलत

गौरतलब है कि अब यह ऑपरेशन(Uttarkashi Rescue Operation) पूरा होने के बाद ऑगर मशीन संचालक कंपनी ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विस के मैकेनिकल इंजीनियर ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जीपीआर पर सवाल उठाए हैं। अभियान के समय जब यह रिपोर्ट आई थी तब बचाव दल में उत्साह का संचार हुआ था और रिपोर्ट के बारे में अधिकारियों ने मीडिया को भी जानकारी दी थी लेकिन अब इस रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े हो गए हैं क्योंकि रिपोर्ट को पूरी तरह से गलत बताया जा रहा है।

मैकेनिक इंजीनियर ने क्या कहा?

वहीं ट्रेचलेस इंजीनियरिंग के मैकेनिक इंजीनियर शंभू मिश्रा ने कहा कि 23 नवंबर को जीपीआर के जरिए मलबे को स्कैन किया गया था, फिर 24 नवंबर को नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने उन्हें जीपीआर की रिपोर्ट दी। उसमें सॉफ्टवेयर पर बताया गया की सुरंग में 5.4 मीटर तक कोई भी मेटल या सरिया नहीं है और इस रिपोर्ट को सही मान लिया गया।

इस वजह से रुक गया था ऑपरेशन

इस रिपोर्ट के मुताबिक काम को शुरू कर दिया गया था। बता दें कि रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए ऑपरेटर ने अमेरिकन ऑगर मशीन को चलाया गया लेकिन करीब 1 मीटर ड्रिल करने के समय ही मशीन का हेड बीड और उसके कट्टर लोहे के जाल में फंस गए थे और बाद में उसे काटकर बाहर निकलना पड़ा। इसकी वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन को रोकना पड़ा था।

दांव पर लगी थी कई जिंदगी

वहीं ऑपरेशन में लगभग 1 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। क्यूंकि ड्रिल के कट्टर हेड और बीड को काट कर निकालने के दौरान कंपनी के कर्मचारियों को अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ी थी। जानकारी के मुताबिक मशीन को यहां लाने के लिए वायु सेवा के विमान का इस्तेमाल करना पड़ा था। इस मशीन के पुर्जे तीन हरक्यूलिस विमान के जरिए चिन्यारी छोर पहुंचाए गए थे। उसके साथ इस मशीन को चलाने वाले 30 कर्मचारियों को भी यहां पर लाया गया था जो मशीन को चलाने में मदद कर रहे थे। इस दौरान एक करोड़ का नुकसान तो हुआ ही समय की बर्बादी भी हुई।

 

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