Turkey-Bangladesh Relations : हाल के समय में तुर्किए लगातार ऐसे कदम उठा रहा है जिससे भारत की टेंशन बढ़ रही है। पहले ऑपरेशन सिंदूर के वक्त PAK सेना का साथ देना और अब भारत के दूसरे पड़ोसी बांग्लादेश के साथ रणनीतिक रक्षा साझेदारी बढ़ाना। तुर्किए लगातार भारत के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है। सत्ता परिवर्तन के बाद से बांग्लादेश में भारत विरोधी काम हो रहे हैं। मोहम्मद यूनुस के आने के बाद से बांग्लादेश के पाक से भी वापस रिश्ते बनाने की तैयारी हो रही है। इस वजह से नई दिल्ली की टेंशन और बढ़ गई है। अब खबर आ रही है कि तुर्किए भारत के पड़ोसी में रक्षा उद्योग लगाने जा रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, तुर्की की रक्षा उद्योग एजेंसी (एसएसबी) के प्रमुख हलुक गोरगुन की 8 जुलाई को ढाका यात्रा महज शिष्टाचार भेंट नहीं बल्कि रणनीतिक तैयारी है। बीआईडीए (बांग्लादेश निवेश विकास प्राधिकरण) पहले ही चटगांव और नारायणगंज में तुर्की के साथ रक्षा गलियारा विकसित करने की योजना बना चुका है।
बांग्लादेश में बनेंगे तुर्किए के खतरनाक ड्रोन!
बता दें कि तुर्किए की कंपनियां अपनी ड्रोन तकनीक, मिसाइल सिस्टम, रडार और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। तुर्किए का Bayraktar TB2 ड्रोन्स काफी शानदार हथियार है। बांग्लादेश के पास पहले से ये मौजूद है। इसके अलावा तुर्किए की Kale Group मिसाइल निर्माण और ASELSAN और ROKETSAN इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और रडार निर्माण करती है। बांग्लादेश में ये कंपनियां स्थानीय उत्पादन इकाइयां खोलने की योजना बना रही हैं, जिससे वह केवल ग्राहक नहीं बल्कि उत्पादन हब भी बन सकता है।
तुर्किए के इस कदम से बढ़ेगी भारत की टेंशन
मोहम्मद यूनुस सरकार पहले से ही भारत विरोधी नीति अपनाए हुए है। बांग्लादेश में हिंदुओं के शोषण को लेकर भी नई दिल्ली और ढाका आमने-सामने हैं। इसके अलावा रोहिंग्या, एनआरसी, सीएए जैसे मुद्दों पर भी तनाव बना हुआ है। ऐसे में तुर्की और चीन के साथ बांग्लादेश का आगे बढ़ना भारत को तीनतरफा रणनीतिक दबाव में डाल सकता है। इसके अलावा म्यांमार में संभावित सैन्य हस्तक्षेप भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका भी बांग्लादेश को म्यांमार के खिलाफ भू-राजनीतिक हथियार के तौर पर देख रहा है। तुर्की का बांग्लादेश में प्रवेश क्षेत्र में नई ध्रुवीकरण और प्रतिद्वंद्विता को जन्म दे सकता है, जो आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय बन सकता है। अब देखना यह है कि नई दिल्ली इस कदम का कैसे मुकाबला करती है।
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