नई दिल्ली: बांग्लादेश में हिंसा की आग भड़क रही है जिसमें 300 से ज्यादा लोग मारे गए। विरोध प्रदर्शन उग्र होने के बाद आक्रोशित छात्रों ने प्रधानमंत्री आवास पर भी हमला बोल दिया जिसके बाद बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना मुल्क छोड़ कर भारत आ गई हैं। आज हम आपको बताते हैं कि कैसे जिन्ना की एक गलती से बांग्लादेश का जन्म हुआ।
14 अगस्त 1947 जब भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो यह दो बड़े भागों में बंटा हुआ था। पूर्वी पाकिस्तान (आज के समय बांग्लादेश)और पश्चिमी पाकिस्तान (आज के समय पाकिस्तान)। आबादी के मामले में पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से आगे था लेकिन सत्ता का शासन और विकास पश्चिमी पाकिस्तान में ज्यादा था। जिन्ना भी पश्चिमी पाकिस्तान में रहते थे।
पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में भाषा का एक बड़ा अंतर था। दरअसल, देश की 56 फीसदी आबादी पूर्वी पाकिस्तान में रहती थी, जो बंगाली बोलती थी। यहां के लोग चाहते थे कि पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा उर्दू के साथ बंगाली भी हो। लेकिन जिन्ना और पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को यह मंजूर नहीं था।
बांग्लादेश के इतिहास पर शोध करने वाले डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल लिखते हैं कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच विवाद की पहली वजह भाषा थी। दरअसल, पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का मानना था कि बंगाली भाषा पर हिंदुओं का प्रभाव है, जिसकी वजह से वे इसे अपनाने को तैयार नहीं थे। इसकी एक झलक 1948 में देखने को मिली।
फरवरी 1948 में जब पाकिस्तान की संसद में बंगाली भाषा को अपनाने का मुद्दा पहुंचा, तो जिन्ना भड़क गए। पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम मोहम्मद अली जिन्ना ने संसद में कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है। इस वजह से जरूरी है कि पाकिस्तान की एक ही भाषा हो जो उर्दू ही हो सकती है।
जब जिन्ना पूर्वी पाकिस्तान के दौरे पर गए तो वहां भी उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान की सिर्फ़ एक ही भाषा है और रहेगी और वो है उर्दू। पूर्वी पाकिस्तान के लोग इससे सहमत नहीं थे, धीरे-धीरे ये आग बढ़ती गई और छात्रों ने भाषा के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में कई छात्रों की जान चली गई और फिर शुरू हुई पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी की जंग।
1971 में भारत पाकिस्तान के युद्ध में, बंगाली गुरिल्ला लड़ाकों और नियमित सैनिकों के समूहों ने – भारतीय सेना की मदद से – पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। पश्चिमी पाकिस्तान ने अंत में 16 दिसंबर 1971 (जिसे ‘विजय दिवस’ के रूप में जाना जाता है) को आत्मसमर्पण कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
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