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पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर पर अवैध कब्जा, सरकार ने मंदिर की जमीन बेचने का किया ऐलान

ओडिशा सरकार ने भगवान जगन्नाथ की लगभग 60,426 एकड़ भूमि में से अवैध कब्जाधारियों को किफायती दरों पर जमीन बेचने की योजना बनाई है। हालांकि मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग इस निर्णय का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह भूमि भगवान जगन्नाथ की संपत्ति है और इसे बेचना धार्मिक भावनाओं का अपमान है।

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Illegal occupation of Shri Jagannath temple of Puri
  • January 11, 2025 9:57 am Asia/KolkataIST, Updated 3 days ago

भुवनेश्वर: ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर की जमीन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। बता दें ओडिशा सरकार ने भगवान जगन्नाथ की लगभग 60,426 एकड़ भूमि में से अवैध कब्जाधारियों को किफायती दरों पर जमीन बेचने की योजना बनाई है। इस कदम से सरकार को 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है। हालांकि मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग इस निर्णय का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

पुजारियों का कड़ा विरोध

मंदिर के मुख्य पुजारी और स्थानीय लोगों ने भगवान की जमीन बेचने को अनुचित बताते हुए इसे धार्मिक उद्देश्यों, जैसे धर्मशाला और गौशाला के लिए उपयोग करने की मांग की है। उनका मानना है कि यह भूमि भगवान जगन्नाथ की संपत्ति है और इसे बेचना धार्मिक भावनाओं का अपमान है। मंदिर प्रशासन के अनुसार, यह प्रक्रिया लगभग दो दशक पुरानी नीति का हिस्सा है, जिसके तहत भगवान जगन्नाथ की जमीन को सुरक्षित रखने के लिए अवैध कब्जों का समाधान किया जा रहा है।

109 प्लॉट्स बेचने का आरोप

विवाद के बीच पुरी के माटीतोटा क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ की 64 एकड़ जमीन की अवैध बिक्री का मामला सामने आया है। महावीर जन सेवा संघ नाम के संगठन पर 109 प्लॉट्स बेचने का आरोप लगा है। इस मामले में 16 नवंबर 2024 को श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने बसेलिसाही पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई थी। वहीं जांच के बाद अब तक 6 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जानकारी के मुताबिक, भगवान जगन्नाथ के पास ओडिशा समेत सात राज्यों में कुल 60,822 एकड़ भूमि है। इसमें से अधिकांश हिस्सा ओडिशा में स्थित है।

अवैध बिक्री बर्दाश्त नहीं

इसके साथ ही राज्य के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने स्पष्ट किया है कि भगवान जगन्नाथ की भूमि की अवैध बिक्री बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने आश्वासन दिया है कि इस मामले में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी और भगवान की संपत्ति को संरक्षित करने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे। इस विवाद के चलते राज्य सरकार और स्थानीय लोगों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं और मामले ने राजनीतिक और धार्मिक रूप लिया है।

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