दिल्ली में बंपर जीत हासिल करने वाली बीजेपी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती सीएम तय करने को लेकर है. बीजेपी को एक नहीं बल्कि दो-मुख्यमंत्रियों का नाम तय करना है. दिल्ली के अलावा जिस सूबे का सीएम तय होना है वहां की परिस्थितियां और भी जटिल है. आइए जानते है दिल्ली में कौन बनेगा मुख्यमंत्री और मोदी-शाह की जोड़ी यहां से कैसे साधेगी बिहार?
नई दिल्ली: करीब 26 साल बाद दिल्ली में जीत हासिल करने वाली बीजेपी के सामने अब दिल्ली के मुख्यमंत्री का नाम तय करने की चुनौती है. बीजेपी को एक नहीं बल्कि दो मुख्यमंत्रियों के नाम तय करने हैं. माना जा रहा है कि पूर्वांचल का कोई चेहरा सीएम बनेगा और यदि ऐसा नहीं हो पाया तो किसी पूर्वांचली को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव है लिहाजा दिल्ली से बिहार साधने की कोशिश होगी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री की दौड़ में प्रवेश वर्मा से लेकर कपिल मिश्रा और सतीश उपाध्याय से लेकर मोहन सिंह बिष्ट, विजेंद्र गुप्ता, आशीष सूद और पवन शर्मा तक के नाम शामिल हैं। दिल्ली का मुख्यमंत्री इन नामों के अलावा कोई और भी हो सकता है. उसके बाद ही किसी के नाम पर मुहर लगेगी. , क्योंकि जब से बीजेपी मोदी- शाह युग आया है तब से बीजेपी हमेशा मुख्यमंत्री के नाम पर चौंकाती रही है। महाराष्ट्र हो या हरियाणा, राजस्थान हो या मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लेकर ओडिशा, बीजेपी में मुख्यमंत्री का नाम हमेशा चौंकाने वाला रहा है. यह ऐसा नाम होता है जो मीडिया की सुर्खियों से दूर रहता है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री का नाम 14 फरवरी के बाद ही सामने आएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी इस समय फ्रांस और अमेरिका के दौरे पर हैं. वह 14 फरवरी को अपने भारत लौटेंगे। जानकारी के मुताबिक दिल्ली सीएम को लेकर प्रारंभिक चर्चा हो चुकी है लेकिन अभी किसी का नाम सामने नहीं आया है. चूंकि राजनीति संदेशों से चलती है इसलिए माना जा रहा है कि बिहार को साधने के लिए भाजपा नेतृत्व किसी बिहारी या पूर्वांचली को सीएम या डिप्टी सीएम बना सकता है.
मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह के इस्तीफे से साफ हो गया है कि भाजपा नेतृत्व कैसे काम करता है. जब तक दबाव रहता है पार्टी अपने सीएम के खिलाफ एक्शन नहीं लेती है. मणिपुर हिंसा के बाद से पूरा विपक्ष एक सुर में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा था, लेकिन बीजेपी आलाकमान इस्तीफा न देने पर अड़ा रहा, नतीजा ये हुआ कि एन बीरेन सिंह कुर्सी पर बने रहे. मणिपुर में हिंसा जारी रही, हालात बद से बदतर होते गए लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदले. 8 फरवरी को दिल्ली जीतने के बाद एन बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और कुछ घंटों बाद मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफा सौंप दिया.
वह इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया गया है, इसलिए अब बीजेपी आलाकमान को नया मुख्यमंत्री चुनना है. मणिपुर का मुख्यमंत्री चुनना अभी भी मुश्किल है क्योंकि अगर मुख्यमंत्री मैतेई समुदाय से होता है तो कुकी नाराज होते हैं, अगर कुकी समुदाय से होता है तो मैतेई नाराज होते हैं और अगर कोई तीसरा व्यक्ति होता है तो ये दोनों समुदाय नाराज होते हैं। फिलहाल हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में बीजेपी किसी की नाराजगी बर्दाश्त नहीं कर सकती. ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री के मुकाबले मणिपुर के मुख्यमंत्री का नाम तय करना ज्यादा मुश्किल है.
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