September 11, 2024
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Delhi: आतिशी नहीं अब ये नेता 15 अगस्त को फहराएगा झंडा, एलजी का आदेश

  • WRITTEN BY: Anjali Singh
  • LAST UPDATED : August 13, 2024, 9:06 pm IST

नई दिल्ली: दिल्ली में इस बार 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज कौन फहराएगा, इसका फैसला हो चुका है। दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने गृह मंत्री कैलाश गहलोत को यह जिम्मेदारी सौंपी है। यह समारोह छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा, जहां कैलाश गहलोत ध्वज फहराएंगे।

आतिशी के नाम को क्यों किया गया खारिज?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर ध्वज फहराने के लिए दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी का नाम प्रस्तावित किया था। लेकिन जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (GAD) ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके पीछे नियमों का हवाला दिया गया है।

दरअसल, मुख्यमंत्री केजरीवाल के अनुसार, इस बार ध्वजारोहण की जिम्मेदारी आतिशी को दी जानी थी। इस संबंध में दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने तिहाड़ जेल में केजरीवाल से मुलाकात की थी और जीएडी को तैयारियों के निर्देश दिए थे। लेकिन बाद में उपराज्यपाल ने कैलाश गहलोत को झंडा फहराने का आदेश दिया।

कौन हैं कैलाश गहलोत?

कैलाश गहलोत दिल्ली के गृह मंत्री हैं और आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है और बहुत कम उम्र में ही दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था।

साल 2015 में उन्होंने आम आदमी पार्टी ज्वाइन की और नजफगढ़ सीट से विधानसभा चुनाव जीता। इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने 6,000 वोटों से जीत दर्ज की। गहलोत का दिल्ली की राजनीति में खासा अनुभव और पहचान है, जो उन्हें इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए उपयुक्त बनाता है।

क्या है इस फैसले का महत्व?

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद बने हुए हैं। आतिशी को ध्वजारोहण के लिए नामित करने के केजरीवाल के फैसले को जीएडी द्वारा खारिज किया जाना और कैलाश गहलोत को यह जिम्मेदारी सौंपना, दिल्ली की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जा रहा है।

यह निर्णय दर्शाता है कि उपराज्यपाल का कार्यालय अब भी कई मुद्दों पर अंतिम निर्णयकर्ता के रूप में काम करता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का दिल्ली की राजनीति पर क्या असर पड़ता है।

 

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