रांची. झारखंड बनने के 20 साल होने वाले हैं. इस दौरान बीजेपी के रघुवर दास ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बावजूद पहले एग्जिट पोल और अब चुनाव रुझान बता रहे हैं कि बीजेपी का दोबारा सत्ता में आना मुश्किल है. पहले लग रहा था कि कुछ कम सीटें होने पर आजसू (AJSU) और बाबूलाल मरांडी की JVM के साथ बीजेपी जुगाड़ की सरकार बना सकती है लेकिन जैसे-जैसे चुनावी रुझान साफ हो रहे हैं झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री बनना तय नजर आने लगा है. कांग्रेस और आरजेडी के साथ झामूमो का गठबंधन खबर लिखे जाने तक 40 सीटों पर आगे चल रहा है वहीं बीजेपी 28 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. बहुमत का आंकड़ा 41 सीटों का है. हम आपको बताते हैं रघुवर दास सरकार की हार के पांच बड़े कारण.
- रघुवर दास की घटती लोकप्रियता: 2014 में जब झारखंड में बीजेपी की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की लहर चल रही थी. मोदी के नाम पर देश के कई कोने में बीजेपी की सरकार बनी, झारखंड में उन्हीं में से एक था. चुनाव से पहले किसी को अंदाजा भी नहीं था कि बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री कौन बनेगा. मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया और रघुवर दास झारखंड के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने. इसके बाद रघुवर दास जनता से उस तरह जुड़ नहीं पाए जैसा जुड़ाव एक जननेता का होता है. अधिकारियों के साथ उनका तल्ख व्यवहार हो या स्थानीय लोगों से कटे रहना. जनता एक मुख्यमंत्री के तौर पर रघुवर दास को बहुत पसंद नहीं कर पाई. चुनाव आते-आते तो यह तल्खी और बढ़ गई. झारखंड में इस बार रघुवर दास के काम के आधार पर वोट मिले हैं, मोदी की लोकप्रियता पर नहीं. अपने पहले टेस्ट में रघुवर दास फेल होते नजर आ रहे हैं.
- विपक्ष की एकता, बीजेपी के एकला चलो पर पड़ा भारी: 2019 विधानसभा चुनावों में बीजेपी अकेले उतरी. उसने किसी दल से गठबंधन नहीं किया. वहीं विपक्ष में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने मिलकर चुनाव लड़ा. विपक्ष में किसी किस्म का विवाद भी नजर नहीं आया. बहुत संगठित और योजनाबद्ध तरीके से विपक्ष ने अपनी लड़ाई लड़ी. वहीं बीजेपी का अंहकार उस पर भारी पड़ा. अभी तक आए रुझानों के मुताबिक बीजेपी अभी भी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन विपक्षी गठबंधन सत्ता के करीब जा पहुंचा है. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि झारखंड की चुनावी रणनीति में बीजेपी पर विपक्ष बीस पड़ा है.
- लोकल मुद्दों की उपेक्षा से उपजी नाराजगी: झारखंड में कई महीनों तक पैरा टीचर्स हड़ताल पर रहे. इस दौरान सरकार का रवैया भी तानाशाही भरा था. हजारों शिक्षकों को जेल में ठूंस दिया गया. कईयों पर केस दर्ज हुए. रघुवर दास ने कहा कि हम हड़ताली शिक्षकों की जगह नए शिक्षक नियुक्त किए जाएंगे. इस दौरान सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था ठप्प रही. इसके अलावा आंगनबाड़ी सेविकाओं की हड़ताल हो या रसोईयों की, सरकार ने इन्हें संतुष्ट करने का कोई प्रयास नहीं किया. झारखंड में केंद्र की सारी योजनाएं लागू होती रहीं लेकिन राज्य विशेष के लिए कोई योजना नहीं बन पाई. इस वजह से झारखंड की जनता में निराशा का माहौल था.
- शहरी वोटर की उदासीनता, ग्रामीण वोटर्स का सबक: झारखंड में 2019 लोकसभा चुनावों में शहरी इलाकों में मत प्रतिशत कम रहा जबिक ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया. यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि बीजेपी को शहरों में ज्यादा वोट मिलते हैं. इस बार शहरी वोटर्स में उदासीनता देखने को मिली. अब चुनाव के रुझानों और परिणामों में भी यहीं बात सामने आ रही है. इस बार लोकसभा चुनावों के मुकाबले भी लगभग पांच फीसदी वोट प्रतिशत में कमी आई है. जाहिर है जब वोट प्रतिशत गिरता है तो इससे जनता की वर्तमान सरकार से नाराजगी के तौर पर ही देखा जाता है.
- घटता रोजगार, ग्रामीण इलाकोें में बढ़ती भुखमरी: झारखंड से भूख से हुई मौतों की खबरें आईं जिसने देश को शर्मसार किया. मॉब लिंचिंग से लेकर चोटीकटवा के अफवाहों से भी लोगोें की मौत हुई. इन सबसे से ऊपर एनएसएसओ के सर्वे से जो बात सामने आई वो ज्यादा परेशान करने वाली है. यह रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण प्रदेशों में लोगों ने अपने खाद्य सामग्री पर भी खर्च करना कम कर दिया है. रोजगार का संकट देश में विकराल रूप ले चुका है. अर्थव्यवस्था की हालत चौपट है. इन सारी परिस्थितियों ने बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया.
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