नई दिल्ली: पेरिस पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन अब तक सबसे सफल रहा है. भारत ने यहां इतने मेडल जीते हैं, जितने पहले कभी किसी पैरालंपिक में नहीं जीते. बिहार के लाल ने पेरिस पैरालंपिक में लहराया है तिरंगा. शरद कुमार मुजफ्फरपुर बिहार से हैं. एक पैर से लाचार शरद ने (3 सितंबर) को भारत को सिल्वर मेडल दिलाया. ये वही शरद कुमार हैं, जिनका आईएएस बनने का सपना यूक्रेन में फंसने की वजह से टूट गया था.
शरद कुमार के जीवन की कहानी में ताकत है. शरद जितने नंबर वन खिलाड़ी हैं, पढ़ाई में भी उतने ही होशियार रहे हैं. वह बिहार से जरूर हैं लेकिन उनकी स्कूली शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से हुई. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के (किरोड़ीमल कॉलेज) से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया. पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए वह (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) गए, जहां से उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की भी पढ़ाई की. पैर से लाचार तब हुआ जब वह केवल 2 वर्ष के थे शरद को लकवा मार दिया, जिससे उनका बायां पैर असहाय हो गया. आज वह जिस सफलता के मुकाम पर हैं वह उनकी सोच का ही नतीजा है.
शरद कुमार पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहे हैं. वे IAS बनना चाहते थे इसलिए उनका ध्यान UPSC परीक्षा की ओर था. 2020 में जब वह यूक्रेन में रहकर टोक्यो पैरालंपिक की तैयारी कर रहे थे. इस बीच कोरोना पूरी दुनिया में फैल गया था. दूसरे देशों की तरह यूक्रेन ने भी लॉकडाउन लगा दिया. इसके बाद टोक्यो पैरालंपिक को भी स्थगित कर दिया गया. यूक्रेन में ट्रेनिंग कर रहे थे, अब वहां शरद बुरी तरह फंस गए. वह अपने परिवार से दूर थे. लॉकडाउन के कारण वह समय पर भारत नहीं पहुंच पाने के कारण UPSC का फॉर्म भी नहीं भर सके. बिना फॉर्म भरे कोई परीक्षा नहीं दे सकता. लेकिन उन्होंने एक पैर के सहारे खेल की दुनिया में नाम कमाते हुए आगे बढ़े. पेरिस पैरालंपिक में उन्होंने पुरुषों की ‘हाई जंप टी63’ कॉम्पिटिशन में 1.88 मीटर की छलांग लगाकर सिल्वर मेडल जीता. शरद कुमार ने टोक्यो पैरालिंपिक में ब्रोंज मेडल जीता.
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