नई दिल्ली: भारत के हर क्षेत्र में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता दिखाई देती है और अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज भी इस विविधता को दर्शाते हैं. हिंदू और मुस्लिम धर्म में शव का सम्मान करना और उसे अंतिम विदाई देने की प्रक्रिया बिल्कुल अलग-अलग है. आइए जानते हैं कि इन दोनों धर्मों की परंपराओं में क्या अंतर है और इनके पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं.
हिंदू धर्म के अनुसार, मानव शरीर पांच तत्वों से बना है – अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी. जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसकी आत्मा शरीर छोड़ देती है, क्योंकि हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा अमर है. मृत्यु के बाद केवल शरीर ही बचता है, जिसे वापस इन्हीं पांच तत्वों में मिल जाना है. इसलिए गरुड़ पुराण के अनुसार दाह संस्कार किया जाता है. इस धार्मिक मान्यता के अनुसार, मृतक के शरीर को पहले गंगा जल से नहलाया जाता है और फिर आग लगा दी जाती है. इस प्रक्रिया को ‘अग्नि संस्कार’ कहा जाता है. फिर शरीर की राख को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है, जिससे माना जाता है कि इससे शरीर के तत्व शुद्ध होकर प्राकृतिक तत्वों में वापस आ जाते हैं. इसके बाद 10वें दिन मुंडन कराकर शांति कर्म किया जाता है. 12वें दिन पिंडदान आदि कर्म किये जाते हैं. तेरहवें दिन अंतिम संस्कार भोज का आयोजन किया जाता है.
इस्लाम की मान्यता के अनुसार मृतकों को जलाया नहीं जाता है. कुरान और इस्लामी विद्वानों के अनुसार, सर्वनाश तब आएगा जब दुनिया खत्म हो जाएगी और केवल इस्लाम रह जाएगा. उस दिन अल्लाह जन्नत में सभी मृतकों को पुनर्जीवित करेगा. इस्लाम के अनुयायियों का मानना है कि शव को दफ़नाना उचित है, क्योंकि यह प्राकृतिक अवस्था के अनुरूप है. मृतक के शरीर को दफनाने की प्रक्रिया को इस्लाम में एक पवित्र और सम्मानजनक कार्य माना जाता है. मृत व्यक्ति को जमीन में गाड़ दिया जाता है. यह आमतौर पर एक गड्ढा या खाई खोदकर, मृतक को उसमें रखकर और उसे ढककर पूरा किया जाता है।
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