अघोरी शब्द को पवित्र और सभी बुराइयों से मुक्त माना जाता है। लेकिन अघोरियों की जीवनशैली इसके ठीक उलट है। हम आपको अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें बताते हैं।
नई दिल्ली: अघोरी बाबा का नाम सुनते ही मन में एक अलग छवि उभरती है। इन्हें भस्म से लिपटे साधु के रूप में जाना जाता है, जो मानव मांस खाते हैं और काला जादू करते हैं। संस्कृत में अघोरी शब्द का अर्थ है ‘प्रकाश की ओर’। अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं। अघोरी शिव के पांच रूपों में से एक है। शिव की आराधना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं। शव से शिव को प्राप्त करने का यह तरीका अघोर संप्रदाय की विशेषता है। इसके साथ ही इस शब्द को पवित्र और सभी बुराइयों से मुक्त माना जाता है। लेकिन अघोरियों की जीवनशैली इसके ठीक उलट है। हम आपको अघोरियों की इस रहस्यमयी दुनिया से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें बताते हैं।
अघोरियों ने कई इंटरव्यू और डॉक्यूमेंट्री में इस बात को स्वीकार किया है कि वे कच्चा मानव मांस खाते हैं। आपको बता दें कि ये अघोरी श्मशान घाट में रहते हैं और अधजले शवों को निकालकर उनका मांस खाते हैं। अघोरियों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र क्रिया करने की शक्ति बढ़ती है। आम लोगों को जिन चीजों से घृणा होती है, अघोरियों के लिए वह उनकी साधना का हिस्सा है।
सामान्य साधु संत ब्रह्मचर्य का पालन करता है। लेकिन अघोरी अन्य साधुओं की तरह ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं। अघोरी कहते हैं कि पूजा करने का सबसे सरल तरीका है कि सबसे खराब परिस्थिति में भी भगवान के प्रति समर्पण कर दिया जाए। उनका मानना है कि अगर शव के साथ शारीरिक क्रिया करते हुए भी मन भगवान की भक्ति में लगा रहे। इससे उच्च स्तर की साधना और क्या हो सकती है।
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