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सप्तऋषियों की पत्नी को देखकर कामवासना में जले अग्निदेव, 6 कन्याओं से संभोग करके तोड़ दिया ऋषियों का घर

हम बात कर रहे हैं अग्निदेव की, जो सप्तऋषियों की पत्नी को देखकर इस तरह मोहित हो गए थे कि उसके साथ हर हाल में संबंध स्थापित करना चाहते थे। महाभारत के वन पर्व में ऋषि मार्कंडेय ने इस कथा का जिक्र पांडवों से किया है।

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Saptarishi
  • January 7, 2025 10:47 am Asia/KolkataIST, Updated 3 weeks ago

Agnidev: महाभारत में एक प्रसंग का उल्लेख है, जहां एक देवता ने ऐसा कदम उठाया कि उससे नाराज होकर सप्त ऋषियों ने अपनी सुंदर पत्नियों से सारे रिश्ते खत्म कर दिए थे। हम बात कर रहे हैं अग्निदेव की, जो सप्तऋषियों की पत्नी को देखकर इस तरह मोहित हो गए थे कि उसके साथ हर हाल में संबंध स्थापित करना चाहते थे। महाभारत के वन पर्व में ऋषि मार्कंडेय ने इस कथा का जिक्र पांडवों से किया है।

ऋषि पत्नी की चाहत

महाभारत में पाईं जाने वाली प्रारंभिक कहानियों के मुताबिक दक्ष की पुत्री स्वाहा अग्निदेव से प्रेम करती थीं, परंतु अग्निदेव उनकी तरफ ध्यान नहीं देते थे। फिर भी स्वाहा ने अग्निदेव का पीछा करना नहीं छोड़ा। सप्तऋषियों द्वारा किये जाने वाले यज्ञ का अग्निदेव अध्यक्षता करते थे। एक बार उन्होंने ऋषियों की पत्नी को देखा और उन्हें देखकर उसपर फ़िदा हो गए। ऋषि पत्नियां इतनी आकर्षक थीं कि अग्निदेव कामासक्त हो गए। उनके लिए खुद को संभालना मुश्किल हो गया था।

स्वाहा ने चली चाल

अग्निदेव यह जानते थे कि जिन स्त्रियों की वो चाहत कर रहे हैं वो ऋषि पत्नियां हैं, उन्हें पाना संभव नहीं है। अग्निदेव को इस बात का भी अपराधबोध था कि वो बार-बार ऋषि पत्नियों के बारे में काम भावना ला रहे हैं। ये सब सोचकर उन्होंने तय किया कि वन में जाकर शरीर का त्याग कर देंगे। स्वाहा को जब यह पता चला तो वो परेशान हो गईं। वो अपना रूप बदलकर ऋषि पत्नी बन गई और अग्निदेव के साथ जाकर संबंध बनाए। वो 6 ऋषि पत्नी का रूप धारण करके गईं और अग्निदेव ने उनके साथ संभोग किया।

स्कंद कुमार का जन्म

अग्निदेव से निष्कासित वीर्य को उन्होंने एक जगह एकत्रित कर दिया, जिससे स्कंद नामक युद्ध के देवता की उत्पत्ति हुई। स्कन्द बहुत बहादुर थे। ऋषि को जब उनकी पत्नियों के बारे में पता चला कि उनका अग्निदेव से संबंध हैं और एक पुत्र भी हैं तो, उन्होंने अपनी पत्नियों को छोड़ दिया। बाद में अग्निदेव को पता चला कि ये सब स्वाहा की चाल थी। 6 ऋषि ने भी अपनी पत्नियों को स्वीकार कर लिया। अग्निदेव ने स्वाहा को अपना लिया। जब भी अग्नि में आहूति दी जाती हैं तो स्वाहा का नाम जरूर लिया जाता है।

 

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