क्या पितृ पक्ष में पिंडदान बेटी-बहू कर सकती हैं ?

नई दिल्ली : पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों का पिंडदान किया जाता है। मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से पिंडदान किया जाता है। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान […]

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क्या पितृ पक्ष में पिंडदान बेटी-बहू कर सकती हैं ?

Manisha Shukla

  • September 20, 2024 8:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली : पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों का पिंडदान किया जाता है। मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से पिंडदान किया जाता है। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान हिंदू परिवार अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनका श्राद्ध करते हैं। यह समय खास तौर पर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को खो दिया हो। पितृ पक्ष के दौरान दिवंगत आत्मा का पिंडदान उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है।

आमतौर पर पिंडदान बेटे द्वारा किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, केवल एक बेटा ही अपने पिता और पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान कर सकता है। लेकिन, अब सवाल यह है कि क्या बहू या बेटी इस काम में हिस्सा ले सकती हैं? कई विद्वानों का मानना ​​है कि बहू और बेटी भी पिंडदान कर सकती हैं, खासकर तब जब परिवार में कोई बेटा न हो। कई परिवारों में बहू या बेटी द्वारा पिंडदान की परंपरा भी देखी जा रही है। माना जाता है कि वे भी अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान दिखा सकती हैं।

धार्मिक जानकार क्या कहते है ? 

धार्मिक जानकारों का कहना है कि अगर परिवार में कोई बेटा नहीं है तो बहू या बेटी को पिंडदान करने का अधिकार है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि पिंडदान के दौरान उसके पति का साथ होना जरूरी है। इसलिए अगर आप बहू या बेटी हैं और अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना चाहती हैं तो पितृ पक्ष आपके लिए उपयुक्त अवसर है। आपको बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान मृत परिजनों के लिए पिंडदान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे प्रेत योनि से बचाने के लिए पितृ तर्पण करना जरूरी होता है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए किया गया तर्पण उन्हें मुक्ति दिलाता है और वे प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि अगर पितरों का पिंडदान नहीं किया जाता है तो पितरों की आत्माएं दुखी और असंतुष्ट रहती हैं।

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