Premanand Ji Maharaj: भारत में त्यौहारों का विशेष महत्व है। ये न केवल खुशियां और उल्लास लाते हैं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक बंधनों को भी मजबूत करते हैं। लेकिन, अगर किसी त्यौहार के दिन परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो सवाल उठता है कि क्या उस त्यौहार को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए। इस संदर्भ में प्रसिद्ध कथावाचक प्रेमानंद महाराज ने एक विचारपूर्ण उत्तर दिया है।
क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज?
प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु दुखद होती है और परिवार का शोक में डूब जाना स्वाभाविक है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस दुःख को जीवन भर त्यौहार के साथ जोड़ा जाए। उन्होंने बताया कि त्यौहारों का उद्देश्य हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, उल्लास और उत्साह लाना है। अगर हम त्यौहार न मनाने का फैसला करते हैं तो हम अपने और अपने परिवार के जीवन से खुशी के उन पलों को छीन लेते हैं।
त्यौहार मनाना कितना जरुरी?
भारत में हर त्यौहार के पीछे गहरी परंपरा और धार्मिक महत्व छिपा होता है। उदाहरण के लिए, दिवाली भगवान राम के अयोध्या आगमन का जश्न मनाती है, होली बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाती है। अगर किसी दिन कोई दुखद घटना घट जाती है, तो उस दिन से त्योहार को पूरी तरह से त्याग देना उन परंपराओं और भावनाओं के साथ अन्याय होगा।
शोक -उत्सव में बनाएं संतुलन
महाराज ने इस बात पर जोर दिया कि जीवन में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। शोक और उत्सव दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं। अगर परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो उस साल शोक की अवधि के दौरान त्योहार न मनाना समझ में आता है, लेकिन इसे हमेशा के लिए नकारात्मक दृष्टिकोण से जोड़ना सही नहीं है।
दिवंगत आत्मा की शांति के लिए
महाराज ने यह भी बताया कि दिवंगत आत्मा की शांति के लिए त्योहारों को सही भावना से मनाना अधिक उचित है। अगर हम त्योहार पर पूजा-पाठ और दान-पुण्य करते हैं, तो यह उस आत्मा की शांति के लिए भी शुभ होता है। यह हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने और दुख को पीछे छोड़ने में मदद करता है। त्योहार के दिन परिवार में किसी की मृत्यु होना निश्चित रूप से दुखद है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हम उस त्योहार को हमेशा के लिए छोड़ दें। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, त्यौहार जीवन का अभिन्न अंग हैं और इन्हें मनाने से हमें जीवन में आगे बढ़ने और सकारात्मकता बनाए रखने की प्रेरणा मिलती है। शोक और उत्सव के बीच संतुलन बनाना ही सही तरीका है।