September 9, 2024
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नरेंद्र मोदी की घटती लोकप्रियता, बीजेपी के लिए खतरे की घंटी, कैसे निकलेगा निष्कर्ष ?

  • WRITTEN BY: Aniket Yadav
  • LAST UPDATED : June 22, 2024, 9:00 pm IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज इस लोकसभा चुनाव से पहले बेहद सशक्त और मजबूत प्रशासक के रूप में रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में आए चुनाव परिणामों के बाद से ही उनपर विपक्ष और उन्हीं के गठबंधन के अन्य साथी उनपर हावी होते नजर आए. हाल ही में आरएसएस-बीजेपी के टकराव की भी खबरें सामने आईं थी, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सीधे तौर पर मोदी को कई मुद्दों पर नसीहत दी थी.  इसके अलावा एनडीए गठबंधन में शामिल जेडीयू और टीडीपी भी बड़ी मुखरता से देश की समस्याएं पीएम मोदी के सामने रख रहे हैं. जेडीयू ने तो अग्निवीर योजना पर बिना बीजेपी की सलाह-मशवरा के इसे रद्द करवाने की बात कह दी थी.

चप्पल घटना

अब विपक्ष की जनता, जो नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं करती और उन्हें पीएम पद पर नहीं देखना चाहती, मोदी के पहले दोनों कार्यकाल के दौरान शांत दिख रही थी, जिस जनता के बीच कुछ छिछक थी लेकिन अब वो मुखरता से अपनी बात मनवाने के लिए सामने दिखाई पड़ती है. हाल ही में जब पहली बार चुनाव जीतने के बाद अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी गए पीएम मोदी पर भीड़ से किसी शख्स ने चप्पल फेंक दी थी. जिसके बाद विपक्षी नेताओं ने पीएम की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए थे, साथ ही पीएम मोदी की घट रही राजनीतिक ताकत को भी इसका कारण बताया था. 

2014 से मोदी इमेज के सहारे भाजपा जीत रही चुनाव

यदि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छवि कमजोर और लाचार नेता की बनती है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ेगा. भाजपा ने 2014 से जितने भी चुनावों में जीत दर्ज की है उसमें पीएम मोदी की लोकप्रियता को सबसे ज्यादा श्रेय जाता है. इसीलिए भाजपा अपने सभी कार्यक्रमों, चुनावी मेनिफेस्टो तक में मोदी का नाम ड़ालना नही भूलते. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भी बीजेपी ने जो घोषणापत्र जारी किया था उसमें भी इसे ‘मोदी की गारंटी’ नाम से पेश किया था. 

चुनाव हारे तो मोदी की जगह किसी अन्य चेहरे को लोकप्रिय बनाने की होगी कोशिश

नरेंद्र मोदी को बीजेपी-आरएसएस ने तीसरी बार प्रधानमंत्री की गद्दी पर जरूर बैठाया है. ये गद्दी उनसे छिनी भी जा सकती है यदि वो राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव या उपचुनाव में पार्टी को सीटें नही दिला पाते हैं या सीटों की संख्या में कमी आती है. तो बीजेपी प्रधानमंत्री की घटती लोकप्रियता को समझेगी और राज्यों के चुनावों में मोदी के नाम पर लड़ने के बजाय स्थानीय नेताओं के लड़ने पर योजना बना सकती है. जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, असम में हिमंता विश्व शर्मा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए. और जब लोकसभा चुनाव की बारी आए तो किसी अच्छा प्रशासक छवि के नेता को सामने कर चुनाव लड़ें. 

बता दें नरेंद्र मोदी के तीसरी बार पीएम पद की शपथ लेने के बाद, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश में हो रही समस्याओं पर खुलकर अपनी बात रखी थी. उन्होंने कहा था कि मणिपुर 2 वर्षों से जल रहा है लेकिन किसी का ध्यान उस तरफ नही जा रहा है. उनके इस बयान के बाद देश में राजनीति तेज हो गई थी. एक तरफ जहां विपक्ष ने भागवत के इस बयान का समर्थन किया, तो वहीं बीजेपी ने भागवत के बयान के बाद बैकफुट पर आ गई. देश के गृहमंत्री अमित शाह ने आनन-फानन में मणिपुर पर मीटिंग कर फैसला किया कि वो जल्द ही वहां के दोनों समुदाय मैतेई और कुकी के सदस्यों से बातचीत कर हल निकालने का प्रयास करेंगे. इससे साफ पता चलता है कि देश की गद्दी पर बैठाने के लिए आरएसएस का कितना बड़ा रोल है. यदि संघ से पीएम मोदी खुश करने में नाकाम रहते हैं तो संघ पूरी कोशिश करेगा कि मोदी की जगह किसी अन्य चेहरे पर दांव खेला जाए.

 

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