मोदी सरकार में हमने आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाया है और साफ़ कर दिया है कि परमाणु बम की धमकी काम नहीं आएगी, पानी और ख़ून साथ-साथ नहीं बहेंगे और बातचीत और आतंकवाद भी साथ-साथ नहीं होंगे। चीन-पाकिस्तान गठबंधन पर विदेश मंत्री ने कहा कि विपक्ष में कई चीन गुरु हैं, जो चीन के बारे में मुझसे ज़्यादा जानते हैं, जिन्हें कूटनीतिक क्षेत्र में 41 साल का अनुभव है। विपक्ष के लोगों को चीन के बारे में जानकारी ओलंपिक में जाकर मिली। लेकिन कभी-कभी क्या होता है कि ओलंपिक की कक्षा में जो बातें होती हैं, उनमें से कुछ छूट जाती हैं, इसलिए निजी कक्षाएं लेनी पड़ती हैं। चीनी राजदूत निजी कक्षाएं देते हैं।
विपक्ष का आरोप है कि पाकिस्तान-चीन गठबंधन मज़बूत हुआ है, लेकिन उनका गठबंधन पीओके की वजह से हुआ क्योंकि हमने पीओके छोड़ दिया था। हमारा मानना है कि चीन और पाकिस्तान क़रीब आए हैं, ये सच है, लेकिन ये कब हुआ? 2005 में पाकिस्तान और चीन के बीच दोस्ती को लेकर समझौता हुआ, फिर मुक्त व्यापार समझौता और फिर ग्वादर बंदरगाह और हंबनटोटा बंदरगाह, ये यूपीए के समय में हुआ था। यूपीए सरकार में चीन को हमारा रणनीतिक साझेदार घोषित किया गया था। 2006 में चीन के साथ क्षेत्रीय व्यापार पर समझौता हुआ और एक टास्क फोर्स की घोषणा की गई। पिछले 20 सालों में अगर समुद्री क्षेत्र में कोई नुकसान हुआ है, तो सबसे बड़ा झटका हंबनटोटा बंदरगाह के निर्माण से लगा और यह 2005 में हुआ था और उस समय की सरकार ने लोकसभा में कहा था कि यह हमारे लिए चिंता का विषय नहीं है। जब चीन ने पहली बार नेपाल में हथियार भेजे थे, तब यूपीए सरकार सत्ता में थी। तो आज जो चीन गुरु यह उपदेश देते हैं कि चीन और पाकिस्तान ने हाथ मिला लिया है, वे किसके समय में मिले थे और किसने मिलाया था?