देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को दिल्ली में रह रहे अवैध रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों को म्यांमार वापस भेजने की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस और प्रशांत भूषण द्वारा दाखिल याचिका में मांग की गई थी कि रोहिंग्या को भारत में रहने दिया जाए क्योंकि वे म्यांमार में हिंसा और नरसंहार का सामना कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और कोटोश्वर सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि भारत में निवास करने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। विदेशी नागरिकों के साथ विदेशी अधिनियम के तहत ही व्यवहार किया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि रोहिंग्या को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) द्वारा शरणार्थी का दर्जा दिया गया है और उनके पास शरणार्थी पहचान पत्र भी हैं। उन्होंने कहा कि म्यांमार में जान का खतरा होने के कारण इन लोगों को भारत में शरण दी जानी चाहिए।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह स्पष्ट कर चुकी है कि रोहिंग्या मुसलमानों की उपस्थिति से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत UN शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और देश उन्हें शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) विदेशी नागरिकों पर भी लागू होता है, लेकिन निवास और स्थायी रहने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। कोर्ट ने यह भी कहा कि रोहिंग्या को वापस भेजने की प्रक्रिया भारत के कानूनों के अनुसार की जाएगी। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की है।
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