नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के एक वरिष्ठ नेता ने समलैंगिक संबंधों को अप्राकृतिक बताया है। उन्होंने कहा है कि ऐसी प्रथा सिर्फ राक्षसों के बीच थी। बता दें कि इससे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शास्त्रों का हवाला देते हुए समलैंगिकता को भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा बताया था। वहीं, अब आरएसएस की श्रमिक शाखा- भारतीय मजदूर संघ के पूर्व अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने इसे गलत बताया है।
पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे हैं
साजी नारायणम ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की पत्रिका ‘द ऑर्गनाइजन’ में अपने एक लेख में समलैंगिक यौन संबंधों को अप्राकृतिक बताया है। इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले की भी आलोचना की है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था। साजी नारायणन के साथ ही पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा है कि भारत की शीर्ष अदालत आंख बंद कर पश्चिमी संस्कृति का आपना रही है।
राक्षसी महिलाओं के बीच थी प्रथा
नारायणन ने अपने लेख में आगे कहा कि समलैंगिकता रामायण में राक्षस महिलाओं के बीच एक प्रथा थी, जिसे हनुमान ने लंका में देखा था। उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र समलैंगिकता को दंडित करते हैं। बता दें कि, इससे पहले इसी साल जनवरी की शुरूआत में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने समलैंगिकता को लेकर बात की थी।
मोहन भागवत ने क्या कहा था?
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने समलैंगिकता को लेकर राक्षसों के राजा जरासंध के दो सेनापतियों- हंस और दिंभका की कहानी सुनाई थी। उन्होंने कहा था कि दोनों के बीच समलैंगिक संबंध थे। इसके साथ ही भागवत ने LGBTQ समुदाय के लिए संघ के समर्थन की बात दोहराई थी।
ये भी पढ़ें-
Adipurush Poster: ‘आदिपुरुष’ के नए पोस्टर में राम, सीता और लक्ष्मण के लुक पर उठे सवाल
2024 लोकसभा चुनाव में विपक्ष की भूमिका पर ममता बनर्जी का बड़ा बयान-” सबको एक होना होगा “