Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में आयोजित ‘संघ यात्रा के 100 वर्ष: नए क्षितिज’ कार्यक्रम को संबोधित किया। संघ प्रमुख ने कहा कि आरएसएस इस वर्ष अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है। उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस का सार हमारी प्रार्थना की अंतिम पंक्ति में निहित है, जिसे हम प्रतिदिन दोहराते हैं – ‘भारत माता की जय’। यह हमारा देश है और हमें इसकी प्रशंसा करनी चाहिए। हमें इसे दुनिया में नंबर एक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता
मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया करीब आ गई है, इसलिए हमें वैश्विक स्तर पर सोचना होगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हर राष्ट्र का एक मिशन होता है, जिसे पूरा करना ज़रूरी है। भारत का भी इसमें योगदान है। आरएसएस की स्थापना का उद्देश्य भारत के लिए है, इसका कार्य भारत के लिए है और इसकी सार्थकता देश को के विश्वगुरु बनने में निहित है। अब विश्व में भारत के योगदान का वक्त आ गया है।
हिंदू की परिभाषा
RSS प्रमुख ने हिंदू की परिभाषा भी साझा की। उन्होंने कहा हिंदू वह है जो अपने मार्ग पर चलने में विश्वास रखता है और अलग-अलग मान्यताओं वाले लोगों का भी सम्मान करता है।
सावरकर और स्वतंत्रता की प्रेरणा
संघ प्रमुख ने वीर सावरकर का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि क्रांतिकारियों की एक और लहर आई थी, जिसने कई प्रेरक उदाहरण छोड़े। आज़ादी के बाद उस लहर का उद्देश्य समाप्त हो गया। सावरकर जी उस लहर के रत्न थे। उस समय के आंदोलन ने लोगों को देश के लिए जीने और मरने की प्रेरणा दी। 1857 के विद्रोह के बाद, कुछ लोगों ने आज़ादी हासिल करने के लिए राजनीति को हथियार बनाया और उसकी नई लहर का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखा गया। अगर उस आंदोलन ने आज़ादी के बाद भी उसी तरह प्रकाश डाला होता, जैसा उसे डालना चाहिए था, तो आज की तस्वीर बिल्कुल अलग होती।