Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ पुरी में 1800 के दशक में देश पर शासन करने वाले अंग्रेज महाप्रभु जगन्नाथ को सिर्फ भगवान नहीं, बल्कि एक शक्ति के रूप में देखते थे। यही नहीं वो भगवान जगन्नाथ से डरते थे भी। मंदिर में आने वाले लाखों लोगों की भीड़ से अंग्रेज घबरा जाते थे। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणविजय सिंह ने एक्स पर ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे अंग्रेजों ने मंदिर के रहस्यों का पता लगाने के लिए जासूसी की। हालांकि, बाद में वे डर गए और पीछे हट गए। तत्कालीन अंग्रेज अफसर लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग ने अपनी डायरी में इसका जिक्र किया है।
अंग्रेजों ने मंदिर की जासूसी के लिए अधिकारी भेजे थे
abp न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुरी सिर्फ मंदिरों का शहर नहीं थी, बल्कि लोगों की ऊर्जा का केंद्र था। उस दौर में भी यहां किसी औपनिवेशिक कानून का पालन नहीं होता था। अंग्रेज अक्सर जासूसी के लिए तीर्थयात्रियों के वेश में अपने एजेंट मंदिर में भेजते थे। उनका उद्देश्य खुफिया जानकारी जुटाना, नक्शे बनाना और मंदिर के रहस्यों का पता लगाना था। जब स्थानीय लोगों को इस बारे में पता चला तो इसका कड़ा विरोध हुआ।
लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग ने एक गुप्त डायरी लिखी थी, जिसमें उन्होंने मूर्ति की आंखों, गर्भगृह के पास के सन्नाटे और जगन्नाथ के जीवित होने के बारे में लिखा था। स्टर्लिंग के अनुसार लोग जिस तरह से भगवान जगन्नाथ के बारे में बात करते हैं, वह परेशान करने वाला है। इससे ऐसा प्रतीत होगा है कि यह कोई जीवित मूर्ति है और सांस ले रही है।” स्टर्लिंग जासूसी करने मंदिर के अंदर गया, लेकिन अंदर जाते ही वह भय से भर गया। बताया जा रहा है कि यहां जासूसी के दौरान एक अधिकारी पागल हो गया और दूसरे को बुखार हो गया।
आखिर कौन सा रहस्य जानना चाहते थे अंग्रेज?
अंग्रेज भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर मौजूद ब्रह्म तत्व का रहस्य जानने को उत्सुक थे। माना जाता है कि यह तत्व मूर्ति के अंदर मौजूद है जो उनका धड़कता हुआ दिल है। कुछ लोग इसे अंतरिक्ष से आया अवशेष मानते हैं। हालात ऐसे हो गए कि अंग्रेज सैनिक और अधिकारी गर्भगृह में जाने से कतराने लगे। लेफ्टिनेंट स्टर्लिंग की डायरी गायब हो गई। हालांकि, कहा जाता है कि उनकी किताब की एक प्रति लंदन के एक संग्रहालय में मौजूद है।
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माना जाता है कि इसमें अंग्रेजों के खिलाफ कई बातें लिखी हैं, जिस वजह से इसे आज भी सीलबंद रखा गया है। अंग्रेजों को डर था कि इस मंदिर की अपार लोकप्रियता उनके शासन के लिए खतरा बन सकती है। वर्ष 1803 में ओडिशा पर कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने जगन्नाथ मंदिर के प्रशासन पर हमला किया गया। स्थानीय पुजारियों और भक्तों के कड़े विरोध के बाद उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। इस घटना के बाद अंग्रेजों को एहसास हुआ कि मंदिर के विशाल धार्मिक और सामाजिक प्रभाव को दबाना आसान नहीं था।