देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं. उन्हीं में से एक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर. विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है
मानसरोवर झील देश की पवित्र झीलों में से एक झील मानी जाती है जिसके दर्शन के लिए देश के कौने-कौने से ऋद्धालु पहुंचते है. माना जाता है कि यह झील भगवान ब्रह्मा के मन से जुड़ी हुई है संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर.
हिंदुओं के लिए कैलाश मानसरोवर का मतलब भगवान का साक्षात दर्शन करना है. कैलाश मानसरोवर को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि पहाड़ों की चोटी वास्तव में सोने के बने कमल के फूल की पंखुड़ियां हैं जिन्हें भगवान विष्णु ने सृष्टि की संरचना में सबसे पहले बनाया था. इन पंखुड़ियों के शिखरों में से एक है कैलाश पर्वत.
शिव की नगरी काशी में महादेव साक्षात वास करते हैं. यहां बाबा विश्वनाथ के दो मंदिर बेहद खास हैं. पहला विश्वनाथ मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में नौवां स्थान रखता है, वहीं दूसरा जिसे नया विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर काशी विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित है.
हरिद्वार में मां दक्षिण काली कलियुग की कल्याणकारी शक्ति हैं जो शत्रुओं से सावधान कर काल की गति को भी बदल देती हैं. सिद्धपीठ की साधना व्यक्ति को समृद्धिशाली और सुखी जीवन प्रदान करती है.
हर-की-पौड़ी, हरिद्वार के सर्वाधिक पवित्र एवं प्रसिद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है. यह वह स्थान है जहां पवित्र गंगा नदी पहाड़ों को छोड़ने के बाद मैदानों में प्रवेश करती है. इस स्थान से संबंधित कई मिथकों में से एक यह है कि वैदिक समय के दौरान भगवान विष्णु एवं शिव यहां प्रकट हुए थे.
हरिद्वार से 24 किलोमीटर दूर स्थित है ऋषिकेश. यही पर गंगा नदी पहाड़ों को छोड़ कर मैदानी भाग में आती है. यहां के मंदिर और आश्रम दुनिया भर में मशहूर है. इस धार्मिक शहर का वर्णन पुराणों में कई जगह मिलता है.
हरिद्वार से 25 किमी उत्तर में और देहरादून से 43 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित ऋषिकेश यूं तो लक्ष्मण झूला, त्रिवेणी घाट के अलावा कई आकर्षण केंद्रों से भरा है, लेकिन इनमें नीलकंठ महादेव का अलग ही महत्व है. यह ऋषिकेश के लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर स्थित है.
गयासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्म ने उन्हें वर दिया था कि उनकी मृत्यु संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों नहीं होगी लेकिन वर मिलते ही गयासुर अत्याचारी हो गया. इसके बाद गयासुर भगवान नारायण को खोजने लगा. जब नारायण नहीं मिले तो गयासुर उनका कमलासन लेकर उड़ने लगा. जिसके बाद गयासुर और नारायण में युद्ध हुआ. जिस जगह भगवान ने गयासुर को रोका वो जगह गया के नाम से प्रसिद्ध हो गई.