नई दिल्ली। गोरखपुर जिले के टॉप टेन अपराधियों की लिस्ट में शामिल मोस्ट वांटेड माफिया विनोद उपाध्याय के साथ यूपी एसटीएफ की शक्रवार की सुबह सुल्तानपुर में मुठभेड़ हो गई। जानकारी के अनुसार भागने की कोशिश के दौरान विनोद ने पुलिस पर कई राउंड फायरिंग की। लेकिन जवाबी कार्रवाई में एसटीएफ की गोली से माफिया विनोद मारा गया।
बता दें कि उस पर 1 लाख रुपए का इनाम था। बता दें कि विनोद गोरखपुर के गुलरिहा थाना में दर्ज मामले में वांटेड था। वहीं एसटीएफ चीफ अमिताभ यश ने जानकारी दी कि शुक्रवार सुबह एसटीएफ के डिप्टी एसपी दीपक सिंह की टीम के साथ हुई मुठभेड़ में गोरखपुर का बदमाश विनोद उपाध्याय घायल हो गया था। उसको अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी मौत हो गई।
छात्रनेता से गैंगस्टर, शूटर बने ऐसे विनोद उपाध्याय का नाम योगी की पुलिस ने, मोस्ट वॉन्टेड माफियाओं की ब्लैक लिस्ट में पिछले साल दर्ज कर लिया था। इसके खिलाफ लगभग 35 मामले दर्ज हैं। विनोद छात्र नेता से माफिया डॉन तो बना लेकिन माफिया डॉन से कुशल या फिर कहें मास्टरमाइंड सफेदपोश नहीं बन सका। जैसे कि 1970-1980 के दशक में गोरखपुर की राजनीति में गोरखपुर विश्वविद्यालय से निकल कर, हरिशंकर तिवारी, बलवंत सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही छात्र नेता से माफिया बनते हुए सफेदपोश बन गए थे। विनोद उपाध्याय ने गोरखपुर विश्वविद्यालय की राजनीति में चुनाव लड़कर खुद छात्रनेता बनने की जगह, वहां नौसिखिये छात्रों को नेता बनवाने की राह चुनी।
नतीजतन विनोद ने साल 2002 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी में अपने जिस दोस्त को अध्यक्ष बनवाना चाहा, उसको जिता लिया। गोरखपुर विश्वविद्यालय से लगभग एक दशक तक जुड़े रहने की वजह से विनोद की वहां बिना कुछ करे धरे ही धाक जम चुकी थी। विनोद ने अपना गैंग भी बना लिया था। ऐसे मास्टरमाइंड विनोद उपाध्याय के ऊपर जब हरिशंकर तिवारी जैसे सफेदपोश माफिया डॉन की नजर पड़ी तो, विनोद को उन्होंने अपने गुट में शामिल कर लिया। बता दें कि हरिशंकर तिवारी 50 साल की माफियागिरी और राजनीति में, कभी भी खुद सामने नहीं आए थे। उन्होंने तमाम उम्र विनोद उपाध्याय, श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे बड़े भाड़े के बदमाशों से ही, अपनी बदमाशी का सिक्का जमाया।
जब साल 1997 में महाराजगंज जिले के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में गोलियों से भून डाला, तब तक इस विनोद उपाध्याय का कहीं भी नाम-ओ-निशां नहीं था। लेकिन श्रीप्रकाश शुक्ला के उस खूनी कांड को देखकर विनोद उपाध्याय के हाथों में भी बंदूक थामने की ललक उठने लगी। श्रीप्रकाश शुक्ला को जब यूपी एसटीएफ ने दिल्ली से सटे गाजियाबाद जिले के इंदिरापुरम इलाके में एनकाउंटर कर दिया। तो उसके बाद विनोद उपाध्याय दबे पांव सत्यव्रत राय के गैंग में जा घुसा। कहा जाता है कि श्रीप्रकाश को सलाह देने वाले जमाने में तब दो ही लोग थे एक ये सत्यप्रकाश जिनके पास विनोद उपाध्याय घुसा था और दूसरे हरिशंकर तिवारी।
सत्यप्रकाश जैसे अपराध की दुनिया के मंझे हुए खिलाड़ी का साथ मिला तो विनोद उपाध्याय के खिलाफ भी गोरखपुर के थानो में मुकदमे दर्ज होने शुरु हो गए। विनोद के खिलाफ पहला मुकदमा एक दलित के साथ मारपीट का साल 1999 में गोरखपुर थाने में दर्ज हुआ था। उसके बाद विनोद उपाध्याय अपराध के जंजाल-बबाल में धंसता चला गया। बदमाशी की दुनिया में पावर और पैसा ही सबकुछ होता है। लिहाजा कुछ दिन बाद ही लेन-देन को लेकर सत्यव्रत और विनोद उपाध्याय दोनों एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए।