नई दिल्ली: मोदी सरकार ने पहले सरकारी कंपनियों के निजीकरण की एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी, जो अब ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार 200 से ज्यादा सरकारी कंपनियों का मुनाफा सुधारने की योजना पर काम कर रही है। यह संकेत है कि सरकार प्राइवेटाइजेशन के बजाय कंपनियों के प्रदर्शन को सुधारने पर ध्यान दे रही है।
सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को पेश होने वाले बजट में नई योजना की घोषणा कर सकती हैं। इसमें कंपनियों के पास मौजूद बिना उपयोग वाली जमीन का बड़ा हिस्सा बेचना और अन्य एसेट्स का मॉनिटाइजेशन शामिल है। इसका उद्देश्य चालू वित्तीय वर्ष में 24 अरब डॉलर जुटाना और इसे कंपनियों में पुनः निवेश करना है। इसके अलावा, प्रत्येक कंपनी के लिए पांच साल का प्रदर्शन और उत्पादन लक्ष्य तय किया जाएगा।
2021 में मोदी सरकार ने सरकारी क्षेत्र के 600 अरब डॉलर के हिस्से के निजीकरण की योजना की घोषणा की थी। इसमें दो बैंक, एक बीमा कंपनी, और स्टील, ऊर्जा और दवा सेक्टर की सरकारी कंपनियों को बेचना शामिल था। साथ ही घाटे में चल रही कंपनियों को बंद करने का भी प्रस्ताव था। हालांकि, केवल कर्ज में डूबी एयर इंडिया को टाटा ग्रुप को बेचने में सफलता मिली। अन्य कंपनियों को बेचने की योजना को वापस लेना पड़ा और एलआईसी में सरकार ने केवल 3.5% हिस्सेदारी बेची।
सरकार अब अंधाधुंध संपत्ति बिक्री से ध्यान हटाकर अपनी कंपनियों के आंतरिक मूल्य को बढ़ाने पर जोर दे रही है। साथ ही, अपनी मैज्योरिटी वाली कंपनियों में उत्तराधिकार योजना शुरू करना चाहती है। इसमें 230,000 मैनेजर्स को सीनियर रोल्स के लिए ट्रेनिंग देने का प्रस्ताव है।
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि बहुमत न होने के कारण मोदी सरकार के लिए सरकारी कंपनियों की बिक्री को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। अप्रैल-मई में हुए आम चुनावों में बीजेपी अपने दम पर बहुमत पाने में नाकाम रही और वह सरकार चलाने के लिए एनडीए गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर है। इस तरह, मोदी सरकार ने प्राइवेटाइजेशन के बजाय सरकारी कंपनियों का मुनाफा सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
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